एस पी जिंदा होते तो आजतक देखकर मर जाते







एस पी सिंह भारत में टेलीविजन पत्रकारिता के जनक थे. आधे घंटे के न्यूज बुलेटिन “आज तक” का उनका प्रयोग दस साल में सवा सौ करोड़ रूपये का खबर उद्योग हो गया है. उनकी पिछली पुण्यतिथि पर कई सारे चेलों ने अपने संस्मरण लिखे और कहा कि आज अगर एसपी होते तो क्या कहते? कुछ ने लिखा था कि समय के साथ बदलावों को सच्चाई मानकर सबकुछ स्वीकार कर लेते. कुछ ने कहा कि वे ऐसी लकीर खींच देते कि लोग इधर-उधर जाते ही नहीं. मैं कहता हूं, आज अगर एसपी जिंदा होते तो आजतक देखकर मर जाते.एस पी की अकाल मृत्यु को सही नहीं कहा जा सकता लेकिन क्या वे बर्दाश्त कर पाते कि उनके खून-पसीने से खड़ा हुआ एक समाचार माध्यम इतना पतित हो गया है कि खबरों के नाम पर नंगई और बेहूदगी परोस रहा है. और किसी चैनल की बात मत करिए. उनके अपने खड़े किये चैनल आजतक को ही देखिए. वह आधे घंटे का कार्यक्रम यह दिखाता है कि करीना कपूर के हाथ में एक अंगूठी है और सैफ अली खान उसे छोड़ने किसी पार्टी में जाते हैं. कैमरामैन पकड़ लेता है कि सैफ के हाथ पर करीना कपूर लिखा हुआ है. अब इस बात खबर बनाने के लिए वहां एक बेचारी टाईप रिपोर्टर खड़ी की जाती है. उससे फोन पर बात होती है और इन्पुट लिया जाता है.


आज तक का ऐसा घोर पतन देखकर बहुत दुख होता है. इतना पतन शायद किसी और चैनल का नहीं हुआ हो क्योंकि लोगों ने उस शीर्ष से शुरूआत ही नहीं की थी जिससे आजतक ने शुरू किया था. अनगिनत अंट-शंट बातों को दिखाकर क्या हम टीवी को मूर्खों का माध्यम बनाना चाहते हैं? और अगर यह सचमुच मूर्खों का माध्यम हुआ तो उसमें काम करनेवाले सीनियर-जूनियर क्या कहे जाएंगे? बुद्धिमान?


टीवीवालों ने खबरों की दशा बिगाड़कर रख दी है. इस इंडस्ट्री में काम करनेवाले शायद इस बात का अंदाजा नहीं लगा पा रहे हैं कि यहां समूहगत रूप से लोगों को मूर्ख नहीं बनाया जा सकता. देश की जनता हमारी आपकी समझ से ज्यादा समझदार है. जनता ने समय-समय पर इसे साबित भी किया है. ये करीना कपूर और भालू बंदर गाशिप हैं और उनके साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए. अभी तो जनता मजा ले रही है लेकिन अगर आप यही सब खबर बनाते रहे तो धीरे-धीरे जनता आपका साथ छोड़ देगी. फिर जिसके साथ जनता नहीं विज्ञापनदाता उसका साथ क्यों होगा?

टिप्पणियाँ

Rajeev Ranjan Lal ने कहा…
संजय जी, आपने बिल्कुल सही लिखा है कि आज अगर एस पी होते तो शायद शर्म से मर जाते। इधर कुछ दिनों से मैंने भी काफी कोशिश की आजतक देखने की और उसके बदलते हुए ढ़ाँचे को समझने की। बहुत बुरा लगता है और तकलीफ होती है इसकी यह हालत देखकर। इस चैनल से ज्यादा जुड़ाव होने के कारण हमेशा से इच्छा रही है कि यह निखर कर आवे और बाँकी न्यूज चैनलों के लिए उदाहरण बने। मगर इधर के बदलाव से अब इस चैनल को देखने का मन भी नहीं करता है।

इसे सुधारने के प्रयास से हम दो जनों ने http://media-naamaa.blogspot.com/ के नाम से एक ब्लोग शुरु किया है, पर उसमें समय गँवाना भी पसंद नहीं रहा। बस उम्मीदें हैं और शुभकामनाएँ हैं की उनके प्रबंधन में बदलाव आये और कुछ एसा देखने को मिले जो दूसरो के लिए अच्छा उदाहरण बने।

आपको आमंत्रण, अगर आप भी हमारे मुहिम में शामिल होना चाहते हों।
Sudhir Rana ने कहा…
ज्यादा समय नहीं हुआ जब मैंने ब्राडकॉस्ट जर्नलिज्म में मास्टर्स किया... लेकिन किसी भी न्यूड चैनल... ओह माफ़ किजियेगा.. किसी भी न्यूज़ चैनल में काम नहीं मिला.... सच बताऊं तो बहुत मन से कोशिश भी नहीं की... कारण... ये समझ नहीं आया कि So called News Channels समाज में होने वाली ख़बरें दिखातें हैं या ‘ख़बरों को बनाते हैं...’ अपनी बात करना इसलिये जरूरी लगा…. ताकि यह बताया जा सके कि लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ में जंग लग गया है... और इस जंग लगे स्तम्भ को संभालने में हमारे सामने कोई अच्छे उदाहरण भी नहीं... बात आज तक की हो रही थी तो दरअसल ... सबसे तेज भागते हुए... यह इतनीं दूर निकल आया है कि ख़ुद की बनाई भूल-भुलैया में खो गया है.... रुको... सोचो क्या यह वही मुक़ाम है... जहां के लिये निकले थे...? ऐसा नहीं है कि कोई भी अच्छा काम नहीं कर रहा है.... जो अच्छा काम कर रहे हैं उनका नाम गिनाना जरूरी है... NDTV का नाम लेकर यह बताना भी जरूरी है कि ‘बिना ख़बर बनाये और ‘नाग-नागिन’ दिखाये जाने के बावजूद भी TRP भी ली जा सकती है और दर्शकों का प्यार भी.... इसके अलावा अगर फूहड़ता देखकर बोर हो गयें हो और दूरदर्शन देखने की इच्छा ना हो तो सहारा समय देखकर भी दीन-दुनिया की ख़बर भी रखी जा सकती है.... Journalist भाईयों से एक बात और... मैं फ़िलहाल एक थियेटर टीचर हूं... संतुष्ट हूं.... मेरे बच्चे.... आपके बच्चे और एक पान वाले के बच्चे एक ही स्कूल में पढ़ेंगे... मैं अपने काम से, पान वाला अपने काम से संतुष्ट हैं... क्या आप जो कर रहे हैं आप उससे संतुष्ट हैं...?

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