गांधी का अस्थिवाहक ट्रक फिर चलेगा
महात्मा गांधी की अस्थियाँ जिस फ़ोर्ड ट्रक पर ले जाई गई थीं उसे इस वर्ष उनकी पुण्यतिथि पर एक समारोह में प्रदर्शित किया जाएगा.
ये पुराना ट्रक 1948 के बाद से ही बंद पड़ा है और इलाहाबाद के एक संग्रहालय में बुरी अवस्था में रखा हुआ था.
फ़िलहाल इस ट्रक की मरम्मत का काम चल रहा है और इस काम में लगे इंजीनियरों को ये देखकर हैरत हुई कि ट्रक का इंजन बिल्कुल दुरूस्त है
अधिकारी ये कोशिश कर रहे हैं कि इस ट्रक को 30 जनवरी को फिर से सड़क पर चलने लायक बनाया जा सके.
इसके बाद 12 फ़रवरी को महात्मा गांधी के अस्थिकलश की यात्रा की ही तरह ट्रक के साथ एक और यात्रा निकाली जाएगी
ऐतिहासिक यात्रा
58 साल पहले महात्मा गांधी की हत्या के बाद जब उनकी शवयात्रा निकली थी तो इसमें लाखों लोग शामिल हुए थे.
महात्मा गांधी की अस्थियों को इलाहाबाद में संगम में प्रवाहित किया गया था.
जब अस्थिकलश ट्रक पर ले जाया जा रहा था तो भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू इस ट्रक पर अस्थिकलश के साथ थे.
नेहरू के साथ महात्मा गांधी के बेटे देवदास और भारत के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल भी फ़ोर्ड ट्रक पर सवार हुए थे.
12 फ़रवरी 1948 को महात्मा गांधी की अस्थियाँ इलाहाबाद में संगम में प्रवाहित की गई थीं और तब लाखों लोगों ने इस ट्रक के मार्ग में आकर गांधी को श्रद्धांजलि दी थी.
संग्रहालय
1947 में निर्मित इस फ़ोर्ड ट्रक को पहले सेना ने सज्जित कर फ़ायर ब्रिगेड पुलिस को सौंप दिया था.
बाद में जब इलाहाबाद में एक संग्रहालय बना तो इस ऐतिहासिक ट्रक को वहाँ राष्ट्रीय संपत्ति बनाकर रख दिया गया.
ट्रक पर पिछले साल अगस्त में नज़र पड़ी उत्तर प्रदेश के राज्य परिवहन निगम के निदेशक उमेश सिन्हा की.
उमेश सिन्हा ने बीबीसी को बताया,"महात्मा गंधी की अंतिम यात्रा से जुड़ी ये गाड़ी हमारी धरोहर का अमूल्य हिस्सा है. यही सोचकर हमारे विभाग ने इसके जीर्णोद्धार की ज़िम्मेदारी ली".
मरम्मत
परिवहन अधिकारी इस ट्रक को मरम्मत के लिए अपने वर्कशॉप में ले जाना चाहते थे लेकिन संग्रहालय के नियम इसकी अनुमति नहीं देते थे.
इस कारण मरम्मत का काम संग्रहालय के ही गैरेज में करना पड़ा.
उत्तर प्रदेश पथ परिवहन निगम के क्षेत्रीय निदेशक पी आर बेलवारायर ने कहा,"इंजीनियर ये देखकर हैरान रह गए कि इतने दशकों तक पड़े रहने के बावजूद ट्रक का इंजन बिल्कुल ठीक था, बस उसे थोड़ा साफ़ करना पड़ा और वह बिल्कुल नए ट्रक के जैसा चलने लगा".
सबसे अधिक मुश्किल आई ट्रक के लिए नए टायरों का प्रबंध करने में लेकिन टायर निर्माता कंपनी सिएट ने नए टायर उपलब्ध कराए जिसे लगा दिया गया है.
अधिकारियों के अनुसार फ़िलहाल संग्रहालय में इस ट्रक को परीक्षण के तौर पर चलाया जा सकता है.
साभार-बीबीसी
ये पुराना ट्रक 1948 के बाद से ही बंद पड़ा है और इलाहाबाद के एक संग्रहालय में बुरी अवस्था में रखा हुआ था.
फ़िलहाल इस ट्रक की मरम्मत का काम चल रहा है और इस काम में लगे इंजीनियरों को ये देखकर हैरत हुई कि ट्रक का इंजन बिल्कुल दुरूस्त है
अधिकारी ये कोशिश कर रहे हैं कि इस ट्रक को 30 जनवरी को फिर से सड़क पर चलने लायक बनाया जा सके.
इसके बाद 12 फ़रवरी को महात्मा गांधी के अस्थिकलश की यात्रा की ही तरह ट्रक के साथ एक और यात्रा निकाली जाएगी
ऐतिहासिक यात्रा
58 साल पहले महात्मा गांधी की हत्या के बाद जब उनकी शवयात्रा निकली थी तो इसमें लाखों लोग शामिल हुए थे.
महात्मा गांधी की अस्थियों को इलाहाबाद में संगम में प्रवाहित किया गया था.
जब अस्थिकलश ट्रक पर ले जाया जा रहा था तो भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू इस ट्रक पर अस्थिकलश के साथ थे.
नेहरू के साथ महात्मा गांधी के बेटे देवदास और भारत के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल भी फ़ोर्ड ट्रक पर सवार हुए थे.
12 फ़रवरी 1948 को महात्मा गांधी की अस्थियाँ इलाहाबाद में संगम में प्रवाहित की गई थीं और तब लाखों लोगों ने इस ट्रक के मार्ग में आकर गांधी को श्रद्धांजलि दी थी.
संग्रहालय
1947 में निर्मित इस फ़ोर्ड ट्रक को पहले सेना ने सज्जित कर फ़ायर ब्रिगेड पुलिस को सौंप दिया था.
बाद में जब इलाहाबाद में एक संग्रहालय बना तो इस ऐतिहासिक ट्रक को वहाँ राष्ट्रीय संपत्ति बनाकर रख दिया गया.
ट्रक पर पिछले साल अगस्त में नज़र पड़ी उत्तर प्रदेश के राज्य परिवहन निगम के निदेशक उमेश सिन्हा की.
उमेश सिन्हा ने बीबीसी को बताया,"महात्मा गंधी की अंतिम यात्रा से जुड़ी ये गाड़ी हमारी धरोहर का अमूल्य हिस्सा है. यही सोचकर हमारे विभाग ने इसके जीर्णोद्धार की ज़िम्मेदारी ली".
मरम्मत
परिवहन अधिकारी इस ट्रक को मरम्मत के लिए अपने वर्कशॉप में ले जाना चाहते थे लेकिन संग्रहालय के नियम इसकी अनुमति नहीं देते थे.
इस कारण मरम्मत का काम संग्रहालय के ही गैरेज में करना पड़ा.
उत्तर प्रदेश पथ परिवहन निगम के क्षेत्रीय निदेशक पी आर बेलवारायर ने कहा,"इंजीनियर ये देखकर हैरान रह गए कि इतने दशकों तक पड़े रहने के बावजूद ट्रक का इंजन बिल्कुल ठीक था, बस उसे थोड़ा साफ़ करना पड़ा और वह बिल्कुल नए ट्रक के जैसा चलने लगा".
सबसे अधिक मुश्किल आई ट्रक के लिए नए टायरों का प्रबंध करने में लेकिन टायर निर्माता कंपनी सिएट ने नए टायर उपलब्ध कराए जिसे लगा दिया गया है.
अधिकारियों के अनुसार फ़िलहाल संग्रहालय में इस ट्रक को परीक्षण के तौर पर चलाया जा सकता है.
साभार-बीबीसी
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