श्रीलंका में कठिन है शांति की राह

श्रीलंका में दो दशक से ज़्यादा समय तक चली हिंसा और आपसी संदेह के बाद वहाँ शांति क़ायम करना एक असंभव काम प्रतीत हो सकता है. वर्ष 2002 में श्रीलंका की सरकार और तमिल विद्रोही संगठन एलटीटीई के बीच हुए संघर्ष विराम के बाद कई लोगों के लिए जीवन सामान्य बना है. लेकिन पिछले छह महीने में हिंसा फिर बढ़ गई है जिससे ये डर पैदा हो गया है कि श्रीलंका फिर युद्ध की कगार पर है.
दोनों ही पक्षों को राजनीतिक असुरक्षा के कारण सकारात्मक क़दमों को बढ़ावा देना और शांति वार्ता दोबारा शुरु करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.तमिल चरमपंथियों पर भी दबाव है क्योंकि दो साल पहले तमिल चरमपंथियों की पूर्वी कमान ने अलग होकर स्वतंत्र गुट बना लिया. एलटीटीई की राजनीतिक साख़ और सैन्य क्षमता इससे काफ़ी घटी थी. एलटीटीई श्रीलंका सरकार पर उस गुट को मदद करने का आरोप लगाता है. कुछ पर्यवेक्षकों का ये भी मानना है कि एलटीटीई अब सब्र खो चुका है. संघर्षविराम के बावजूद उसने ऐसे राजनीतिक परिणाम नहीं देखे जिनकी उसे उम्मीद थी. उसके राजनीतिक लक्ष्यों और साख को भी औपचारिक तौर पर कोई मान्यता नहीं मिली है. दो साल पहले एलटीटीई ने अपने अंतरिम सरकार के अपने प्रस्ताव की रूपरेखा रखी थी लेकिन सरकार की और से सकारात्मक जवाब नहीं आया. दोनो पक्षों के बीच जो खाई है, उसके भरने के कोई आसार नहीं हैं. किसी प्रबल नई सोच के अभाव में इस लंबी लड़ाई में कोई ठोस प्रगति होने के आसार कम ही हैं.

साभार-बीबीसी

टिप्पणियाँ

लोकप्रिय पोस्ट