स्लम को सलाम

पत्थर की मूरतों में समझा तो खुदा है
खाके वतन का मुझको हर जर्रा देवता है


5000 साल का अटूट इतिहास,सोने की चिडिया...आज से कोई 500 साल पहले एक बहेलिया केरल के कोझीकोड में आया...जो बाद में पुर्र्तगाली में कालीकट कहलाया...कालीकट के राजा से उसने तिजारत का फरमान हासिल कर लिया...सोने की चिडिया के पिंजड़ा तैयार हुआ...फिर वक्त गुजरा...और लंबे इंतजार के बाद आया 15 अगस्त 1947...यूनियन जैक उतारा गया और लाल किले पर तिरंगा लहराया गया...भारत आजाद है...लेकिन देश के कई कोने आज भी कैद हैं...बंदुको की जगह कैमरों ने लेली है...अंग्रेज अब भी आते है...पहले सिपाही बनकर आते थे.अब सैलानी बनकर आते है...अब हाथ में कैमरे होते है...काम एक ही है...शूट करना...पहले गरीब किसान लगान देते थे, अब उनके बेटे अपनी गरीबी की तस्वीर देते है...और गरीबी का एक बडा बाजार है धारावी .....जिसकी चर्चाएं इस बार और भी बढ़ गई हैं। वजह है...धारावी पर बनी फिल्म स्लम डॉग...और फिर उसे ऑस्कर ऑर्वाड से नवाजा जाना। फिल्मी पर्दे पर धारावी की कहानी ने दुनियाभर में तहलका मचा दिया है। किसी स्लम के धरती से शिखर तक पहुंचने का ये बड़ा किस्सा है...वाकई सलाम है इस स्लम को..धारावी आज दुनिया के बाजार में सबसे ऊपर चढ़ चुका है। भले ही धारावी को आज मिलेनियर का तमगा मिल गया हो। लेकिन गरीबी का बाजार भारत में ...हमेशा से ही गर्म रहा है...और इसे अंग्रेजों ने बखूबी समझा है...। एशिया का सबसे बड़ा स्लम धारावी...। फिल्म स्लमडॉग को मिले ऑस्कर के बाद ...धारावी के चर्चाओं का बाजार और गर्म हुआ है...। कहा गया ये स्लम मिलीनियर हुआ है...। सच तो ये है कि धारावी मिलीनियर हुआ नहीं है... बल्कि वो तो पहले से ही है। धारावी की गलियां...यहां आज भी उतनी ही रौनक है...आज भी उतनी ही चहल पहल है...और यहां उतनी ही गर्मजोशी है...जितनी सालों पहले हुआ करती थी...बदलते वक्त के साथ धारावी की रौनक जरूर बढ़ी है...और बढ़ते रौनक के साथ ये मिलेनियर यानि करोडपति बन गई है...लेकिन सच तो ये है कि अरबपति बन गई है धारावी...पहली नजर में स्लम का नाम सुनते ही...आंखों में तस्वीरें बसती हैं...गरीबी की...भुखमरी की...कीड़ों मकोड़ों से भरी गलियों की...तंगहाल और परेशान जिंदगी की...लेकिन धारावी वो धारावी नहीं...यहां अगर गरीबी है...तो इसी गरीबी को खरीदने वाले लोग भी हैं...और इस गरीबी को बिकते देखने वाले लोग भी...बॉलीवुड ने भी इस धारावी को कई बार खरीदा है...और जमकर बेचा भी है...रुपहले पर्दे पर उतरने के बाद धारावी ना सिर्फ बॉलीवुड की वल्कि अब तो हॉलीवुड में ये स्लम मिलेनियर बन गई है...लेकिन सच तो ये है कि धारावी पहले से ही अरबपति थी...बॉलीवुड पहले भी यहां की तस्वीरें खींचता था...अपनी जिंदगी के आखिरी पड़ाव पर पहुंच चुके बनसी लाल काफी खुश हैं कि आज धारावी दुनिया की जुबां पर है...लेकिन वो ये भी जानते हैं कि धारावी कोई आज का अरबपति नहीं है...वो पहले भी था...उनके जमाने में भी बॉलीवुड यहां आता था और तस्वीरें ले जाया करता था...और यहां की गरीबी,तंगहाली,बेबश जिंदगी और लोगों के सपने को वाजार में बेचा करता था...बनसी लाल अपने उस पुराने वक्त को भूल नहीं पाए हैं...यहां कौन-कौन आता था शूटिंग करने...उसकी धुंधली धुंधली यादें आजा भी ताजा हैं....

अगर धारावी की गरीवी बिकती है...तो इस गरीबी से निकलने वाले प्रोड्क्ट अमीर ही खरीदते हैं...ये तस्वीर भी इसी धारावी की है...जी हां...ये धारावी का वो लेदर मार्केट है जो पूरी दुनिया में मशहूर है...यहां के प्रोडक्ट सालों से बाजार में बिक रहे हैं...और जब से स्लमडॉग मिलेनियर का नाम लोगों ने सुनना शुरू किया...तब भी यहां के प्रोडक्ट बिक रहे थे...लेकिन फिल्म को ऑस्कर से नवाजे जाने के बाद ये प्रोडक्ट और भी बिकेंगे...जी हां...कम से कम यहां के व्यवसायियों का तो यही मानना है...

सच ही तो है...वैसे कहा भी यही जाता है कि जो जितना हिट है उसकी बिक्री भी उतनी ही बढ़चढ़ कर होती है...जब धारावी की गरीवी...और गरीवों के सपने बिक सकते हैं...तो उनकी मेहनत और पसीने से बनने वाले लेदर प्रोडक्ट क्यों नहीं बिक सकते...जब धारावी की जिंदगी पर बनी फिल्म स्लमडॉग मिलेनियर दुनिया भर में धूम मचा सकती है...तो धारावी की धूम तो मचेगी ही...यही सच है एशिया के सबसे मशहूर और सबसे बड़े एक स्लम का ...चर्चाओं के बाजार में धारावी भले ही आपको आज गर्म लग रहा हो...लेकिन सालों पहले से धारावी में गर्मी थी...ये अलग बात है पूरी दुनिया को वो गर्माहट आज महसूस हो रही है...सपनों की नगरी मुंबई...और इसी मुंबई के बीचों-बीच बसा है धारावी...वो धारावी जो एशिया का सबसे बड़ा स्लम है। ...यानी लाख टके का सवाल ये कि हालीवुड को रहमान और बालीबुड में दम स्लमडॉग मिलेनियर में ही क्यो दिखायी दिया...रहमान लगान में भी थे...गाने भी ऑरीजनल थे...रंग दे बसंती में भी थे...गाने बिल्कुल ऑरीजनल थे...लेकिन वंहा कोई डैनी बॉयल नही था...ये पश्चिम का फलसफा है...उन्होने गरीबी का अंतराष्टीय बाजार सजाया है...हम खुश हुये जा रहे है....

टिप्पणियाँ

भारतवासी खुश हैं तो सिर्फ आस्‍कर मिलने की खुशी से....और बाकी तो फिल्‍म में बहुत बातें कष्‍टदायक है ही , जिससे तकलीफ तो हुई ही है।

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