अमिताभ में ही आप मुझे देख लें

वंदना

'अमिताभ में ही आप मुझे देख लें'
कभी उसने दीवार का विजय बनकर आक्रोश को आवाज़ दी, कभी जय बनकर दोस्ती की अमर दास्ताँ कह गया, कभी सिलसिला में प्यार और रोमांस के रंग भरे, चुपके-चुपके कहीं वो हंसाता-गुदगुदाता रहा और बन कर उभरा मुक़द्दर का सिंकदर.


यानी अपने अभिनय के ज़रिए आम जन की तमाम भावनाओं को चेहरा दिया है अमिताभ बच्चन ने. चालीस बरस पहले 15 फ़रवरी 1969 को इस दुबले पतले, बुलंद आवाज़ वाले और हुनरमंद नौजवान ने अपनी पहली फ़िल्म साइन की. कहते हैं कि होनवार बिरवान के होत चीकने पात. पहली ही फ़िल्म में अमिताभ बच्चन ने राष्ट्रीय पुरस्कार जीतकर दिखा दिया कि ये तो महज़ एक ट्रेलर है, हुनर की असली तस्वीर तो आनी बाकी है.

40 वर्ष पुराने करियर में अमिताभ बच्चन ने बार-बार ये साबित किया है कि क्यों लोग उन्हें शहंशाह तो कभी सदी का महानायक कहते हैं.

कहते हैं कि जब उनका जन्म हुआ था तो पहले उनका नाम इंक़लाब रखा जाना था लेकिन फिर रखा गया अमिताभ...यानी कभी न ख़त्म होने वाला प्रकाश.

असल ज़िंदगी में भी अमिताभ ने अपनी शख़्सियत के ज़रिए अपने नाम को जीवंत किया है. अमिताभ बच्चन के पिता डॉक्टर हरिवंशराय बच्चन की गिनती हिंदी के दिग्गज कवियों में होती है- ऐसे कवि जिन्होंने कविता को जन-जन तक पहुँचाया. साहित्य जगत में मधुशाला के रचयिता बच्चन जी की कद बहुत ऊंचा था. लेकिन ख़ुद हरिवंश राय बच्चन अपने बेटे की कला के कायल थे.

हरिवंश राय बच्चन के साहित्य के प्रशंसक वरिष्ठ पत्रकार कुमार दिनेश 70 के दशक में उनसे पत्राचार किया करते थे...कई विषयों पर कुमार दिनेश उन्हें चिट्ठी लिखते तो बच्चन जी भी उनका ख़ुद चिट्ठी लिखकर जवाब देते.

कुमार दिनेश बताते हैं कि एक बार उन्होंने अपनी कोई जिज्ञासा बच्चन जी को लिखकर भेजी और साथ ही आग्रह किया कि वे अपनी तस्वीर भी साथ में भेजें. जवाब में बच्चन जी ने ये पत्र लिखकर भेजा था.

प्रिय भाई

पत्र के लिए धन्यवाद. सदभावना के लिए आभारी हूँ.

अमिताभ में ही आप मुझे देख लें.

शुभकामनाएँ

हरिवंश राय बच्चन

कुमार दिनेश बताते हैं कि 19 दिसंबर 1977 को बच्चन जी ने अपनी जगह पत्र में अमिताभ बच्चन की तस्वीर भेज दी थी.

अमिताभ से मतभेद

अपने करियर में भी लाखों प्रशंसकों से ऐसा प्यार और समर्थन अमिताभ को भरपूर मिला- बात चाहे उनकी नई फ़िल्म की रिलीज़ की हो, राजनीति में उनकी पारी की हो या निजी ज़िंदगी में उतार-चढ़ाव की.

कुली की शूटिंग के दौरान हुई दुर्घटना के बाद जब अमिताभ ज़िंदगी और मौत से जूझ रहे थे तो हज़ारों हाथ सजदे करने के लिए उठे और लाखों के लब पर उनके लिए दुआ थी.

अमिताभ ने पर्दे पर अपने विभिन्न किरदारों के लिए सुर्खियाँ बटोरी और कई बार वो किरदार निभाए जिसमें वे सत्ता, शासन और हालात से लड़ते नज़र आए.

वास्तविक जीवन में भी उन पर कई आरोप लगे. विवादों ने कभी अमिताभ का दामन नहीं छोड़ा.-राजनीति से दूर रहकर भी राजनीति में शामिल होने का आरोप, प्रेस से उनके बनते-बिगड़ते रिश्ते , कभी बोफ़ोर्स का साया तो कभी बारबंकी ज़मीन का मामला.ये सब विवाद काफ़ी नहीं थे तो हिंदी सिनेमा के इस सरकार को राज ठाकरे ने बार-बार निशाना बनाया.

हालांकि ये भी सच है कि इस सब के बावजूद अमिताभ के प्रशंसकों में शायद ही कोई कमी आई है. लोगों की नज़र में अमिताभ जैसी तमाम हस्तियों की छवि लार्जर दैन लाइफ़ होती है और उनके चाहनेवाले इसी छवि और तस्वीर में असल अमिताभ का अक्स देखते हैं.

असल ज़िंदगी वाले अमिताभ से मतभेद होते हुए भी पर्दे पर दिखने वाले अमिताभ की प्रतिभा को नकारना आसान नहीं क्योंकि प्रशंसक तो अमिताभ की इसी प्रतीभा के कायल हैं जो पर्दे पर दिखती है.

और ऐसा कम ही होता है कि पर्दे पर दिखने वाले अमिताभ ने अपने किरदार के साथ वफ़ा न की हो (गब्बर से बने बब्बन वाले किरदार जैसे अपवादों को छोड़ दें तो). लोगों का यही भरोसा और प्यार शायद कलाकार की असली पूंजी भी होती है.

टिप्पणियाँ

Manjit Thakur ने कहा…
पुनेठा जी अच्छी जानकारी साधुवाद
Udan Tashtari ने कहा…
अमिताभ तो अमिताभ हैं..एक अच्छा आलेख.

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