'मात्र दो लोगों ने तय किया विभाजन'
भारत-पाकिस्तान के बँटवारे के गवाह रहे एक ब्रिटिश नौकरशाह के अप्रकाशित दस्तावेजों के मुताबिक़ सिर्फ़ दो लोगों ने भारत के बँटवारे और दो मुल्कों की तक़दीर को तय किया था.
नौकरशाह क्रिस्टोफ़र बोमांट 1947 में ब्रिटिश न्यायाधीश सर सिरिल रेडक्लिफ़ के निजी सचिव थे. रेडक्लिफ़ भारत-पाकिस्तान के बीच सीमा निर्धारण आयोग के अध्यक्ष थे और सचिव होने के नाते बोमांट इस विभाजन का अहम हिस्सा रहे.
क्रिस्टोफ़र के पुत्र राबर्ट बोमांट ने अपने पिता के दस्तावेजों के आधार पर दावा किया कि लार्ड माउंटबेटन के निजी सचिव सर जार्ज एबेल की 1989 में मृत्यु के बाद अब सिर्फ़ वह ही दोनों देशों के विभाजन का सच जानते हैं. क्रिस्टोफ़र बोमांट की मृत्यु 2002 में हो गई थी.
'ज़ल्दबाज़ी में बँटवारा'
दस्तावेज़ों के मुताबिक़ हिन्दुस्तान के तत्कालीन वायरसराय लार्ड माउंटबेटेन और रेडक्लिफ़ ने ही मिलकर दोनों देशों के बंटवारे का खाक़ा खीच दिया था
एक अनुमान के अनुसार बँटवारे में दोनों ओर से लगभग 1.45 करोड़ लोग पलायन करने को मज़बूर हुए थे. धार्मिक आधार पर हुए इस बँटवारे में चालीस करोड़ लोगों की तक़दीर तय की गई.
इन दस्तावेज़ों में ब्रिटिश भारत के आख़िरी दिनों की स्थिति का विश्लेषण किया गया है. इसमें कहा गया कि बँटवारे के काम को बेहद जल्दबाज़ी में अंज़ाम दिया गया था.
बोमांट ने दस्तावेज़ों में लिखा है कि वायसराय माउंटबेटन को पंजाब में हुए भीषण नरसंहार का ज़िम्मेदार ठहराया जाना चाहिए जिसमें महिलाओँ, बच्चों समेत लगभग पाँच लाख लोग मारे गए थे.
पक्षपात के आरोप
इन दस्तावेजों में कहा गया 'माउंटबेटन ने न केवल नियमों को भारत के पक्ष में झुकाया बल्कि सीमा निर्धारण में उन्होंने रेडक्लिफ़ पर कई इलाकों को भारतीय सीमा में शामिल करने का दबाव डाला'.
दस्तावेज़ों के मुताबिक़ माउंटबेटन और रेडक्लिफ़ के बीच एक दोपहर खाने के समय एक मुस्लिम बहुल इलाके के मामले में बातचीत हो रही थी लेकिन उन्हें उस दौरान बाहर जाने को कह दिया गया था. बाद में यह इलाक़ा भारत को दे दिया गया.
उनके अनुसार माउंटबेटन ने रेडक्लिफ़ को सीमा निर्धारण के लिए सिर्फ़ छह हफ़्तों का समय दिया था और कई मामलों में माउंटबेटन और रेडक्लिफ़ के बीच सहमति नहीं हुआ करती थी.
साभार- बीबीसी
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