सेज इन दिनो फैड है, यानी फैशन में है...सरकार को लगता है कि देश की हर मर्ज की दवा सेज़ है...देखते है कि दरअसल सेज कितने फायदेमंद है
सेज यानी स्पेशल इकानॉमिक जोन...बात टैक्स चुकाने की हो या कामगार को नौकरी से जुड़ी सामाजिक सुरक्षा देने की..या फिर पर्यावरण को बचाने के नियम कायदों की.... सेज में सरकार की नहीं चलती.. सेज यानी वो इलाका- जहां उद्योगों को आर्थिक तौर पर देश के दूसरे हिस्सों के मुकाबले काफी सहूलियतें मिली होती हैं... सन 2000 के बाद से हिन्दुस्तान सेज की राह पर चला....सरकार का तर्क था कि हमारे पास बुनियादी ढांचा तैयार करने और रोजगार बढ़ाने के लिए एक जादू की छड़ी है... इसका नाम है विदेशी निवेश...विदेशी निवेश के नाम पर सरकार ने सेज के रूप में किसानों से उपजाऊ जमीन लेने और निवेशकों के लिए फायदे का स्वर्ग बनाने की तरकीब निकाली...देश में रोजगार और व्यापार बढ़ाने के नाम पर एक्सपोर्ट प्रासेसिंग जोन मौजूद थे...
1986 में दुनिया के 47 देशों में 176 ईपीजेड थे... ग्लोबलाईजेशन का चक्का चला तो ईपीजेड की तादाद बढ़ी...। 2003 में 116 देशों में ईपीजेड की संख्या 3000 तक जा पहुंची....लेकिन इसी दौर में सौदागर बनी भारत सरकार का मन इतने से नहीं भरा... ईपीजेड से सरकार एसईजेड तक पहुंची... 2005 में सेज एक्ट बना... 2006 में इसके कायदों का एलान हुआ..सरकार ने कहा सेज से 1 लाख करोड़ रुपये का निवेश होगा...इसमें 25 हजार करोड़ रुपये तो सीधे विदेशी निवेश से आएंगे...
सरकार ने नहीं बताया कि सेज से कितने घर उजड़ेंगे...कितनों की किसानी छिनेगी...सरकार ने अब तक 404 सेज इलाकों का प्रस्ताव किया है... 212 सेज क्षेत्रों को हरी झंडी मिली चुकी है...
इन 212 प्रस्तावों में ही 33761 हेक्टेयर खेती की जमीन सरकार ने हथिया ली...बाकी को भी मंजूर कर लिया गया तो 1 लाख हेक्टेयर जमीन से किसान हाथ धोएंगे... टैक्स में छूट देने के चक्कर में सरकार को राजस्व का घाटा होगा 939000 मिलयन रुपये का......
हालांकि ये बात भी सच हैं कि साफ्टवेयर इंडस्ट्री में छलांग लगाने की बात हो या टेलिकाम सेक्टर में अपना डंका पीटने की ..ये सब कारामात सेज की ही बदौलत हुआ है... सेज की हिमायत में सरकार की दलीलों में भी दम है..
सरकार कहती है कि सेज में खेती की 1 लाख हेक्टेयर जमीन जा रही है लेकिन ये कुल खेतिहर जमीन के एक फीसदी से भी कम है..राजस्व का घाटा होगा लेकिन 4 लाख 40 मिलियन रुपये की अलग से आमद भी होगी...हर सूबे में जमीन लेने के कानून अलग-अलग हैं सो सेज की जमीन पर मुआवजे की रकम तय करने का जिम्मा सूबों का है..साथ ही सेज डेवलपर्स पर जिम्मेदारी डाली गई है कि वे लोगों का पुनर्वास करें...
बहरहाल सेज पर इस वाद-विदाद के बीच सरकार की कथनी और करनी का फर्क भी सामने है...

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