उवाच लॉर्ड मैकाले का


दोस्तो संजय तिवारी मित्र है, बहुत दिनो से अपना ब्लॉग लिख रहे है, हाल ही में उनका ये लेख पढा,गजब था रहा नही गया, पढा,बिना उनकी इजाजत के अपने ब्लाग में छाप रहा हूं, मित्रो से इतनी छूट तो आप लेही सकते हैं...खैर आप पहले पढ़िए।


लार्ड मैकाले की योजना--


मैं भारत के कोने-कोने में घूमा हूं और मुझे एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं दिखाई दिया जो चोर हो, भिखारी हो. इस देश में मैंने इतनी धन-दौलत देखी है, इतने ऊंचे चारित्रिक आदर्श और इतने गुणवान मनुष्य देखे हैं कि मैं नहीं समझता कि हम कभी भी इस देश को जीत पायेंगे. जब तक उसकी रीढ़ की हड्डी को नहीं तोड़ देते जो है उसकी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत.और इसलिए मैं प्रस्ताव रखता हूं कि हम उसकी पुरातन शिक्षा व्यवस्था और संस्कृति को बदल डालें. यदि भारतीय सोचने लगे कि जो भी विदेशी और अंग्रेजी में है वह अच्छा है और उनकी अपनी चीजों से बेहतर है तो वे अपने आत्मगौरव और अपनी संस्कृति को भुलाने लगेंगे और वैसे बन जाएंगे जैसा हम चाहते हैं.

(2 फरवरी 1835 को ब्रिटिश संसद में मैकाले द्वारा प्रस्तुत प्रारूप)

टिप्पणियाँ

लोकप्रिय पोस्ट