बाबा - कठिन डगर है राजनीती की


सत्याग्रह की तस्वीर बदल गई है... अन्ना हज़ारे का सत्याग्रह और बाबा रामदेव का सत्याग्रह... दोनों की तस्वीर बिल्कुल जुदा... क्या वजह थी कि 4 दिन तक चले अन्ना हज़ारे के अनशन को सरकार ने झुककर और बेहद शांतिपूर्ण तरीके से ख़त्म कराया... और बाबा रामदेव के अनशन को 18 घंटे के अंदर ताक़त के ज़रिए कुचल दिया गया...
दरअसल इसके पीछे वजह थी अनशन करनेवाले की मंशा... अन्ना हज़ारे 4 दिनों तक अनशन पर बैठे रहे... लेकिन वो एक बार भी ख़ुद सरकार से जाकर नहीं मिले... ना ही अपने मंच तक किसी सरकारी नुमाइंदे को आने दिया... उनके साथी सरकार से बात करते रहे...
वहीं बाबा रामदेव शुरूआत से ही सरकार से सीधे तौर पर बात कर रहे थे... दो घंटे एयरपोर्ट के वीआईपी लाउंज में मीटिंग... फिर फाइव स्टार होटल में मीटिंग... और अनशन के दौरान भी मंच से हटकर मंत्रियों से मीटिंग की... यहां बाबा की नीयत सामने आ जाती... वो क्या चाहते थे ये सरकार को समझते देर नहीं लगी... इसीलिए तो रामदेव से नोट लेकर उन्हे अनशन करने दिया गया... बाबा रामदेव ने लेटर में अपनी सहमति दी थी कि वो 4 जून की दोपहर तक अनशन को योग शिविर में बदलने की घोषणा कर देंगे... लेकिन जब रामलीला मैदान में 1 लाख से ज़्यादा की भीड़ उमड़ पड़ी... पूरे देश में बाबा रामदेव की लहर दौड़ने लगी तो बाबा रामदेव उत्साह में आ गए... और सरकार को दिया अपना वादा भूल गए... उन्हे लगा की जनता की ताक़त उनके पास है और सरकार ऐसे वक़्त में कोई रिस्क नहीं लेगी...
लेकिन बात मंशा की थी... बाबा रामदेव को लोकप्रियता चाहिए थी... उसके लिए सरकार ने उनको मौका दिया... लेकिन जब बाबा ज़िद पर आ गए तो... सरकार की लाठी चल पड़ी...
सवाल यही है कि जिस कालेधन को लेकर विपक्ष काफी पहले से सवाल उठाता आया है... सुप्रीम कोर्ट तक सरकार से सवाल करती है... जिस पर सरकार पहले से ही दबाव में है... और जिस पर सरकार को कार्रवाई करना मजबूरी है... उस कालेधन के मुद्दे को लेकर बाबा रामदेव क्यों हीरो बनने निकल पड़े...
वजह छुपी इन तस्वीरों में... 14 नवम्बर 2010 को बाबा रामदेव की अगुवाई में अन्ना हज़ारे जंतर मंतर पर बैठे... उनके साथ किरण बेदी भी थीं... अरविंद केजरीवाल भी थे... स्वामी अग्निवेश भी थे... तब अन्ना हज़ारे को देश की ज़्यादातर जनता पहचानती भी नहीं थी... उनके बीच में बाबा रामदेव ही सबसे लोकप्रिय व्यक्ति थे... लेकिन जब 5 अप्रैल को अन्ना हज़ारे जंतर मंतर पहुंचे... तो तस्वीर बदलने लगी थी... अन्ना हज़ारे का क़द इतना ऊंचा हो गया कि बाबा रामदेव उनके सामने दिखते भी नहीं थे... ये बाबा की छवि पर चोट थी... बाबा को वो क़द हासिल करना था... और इसके लिए उन्होने कालेधन के मुद्दे को उछालने की कोशिश की...
बाबा रामदेव की मंशा सवालों के घेरे में इसलिए भी आती है क्योंकि उन्होने ऐसे वक़्त में अपने आंदोलन को शुरू किया जब पहले से सरकार सिविल सोसायटी के साथ मिलकर भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लोकपाल बिल पर काम कर रही थी...
दरअसल अन्ना हज़ारे की वजह से पहले से जनआंदोलन से डरी सरकार को और डरा कर बाबा रामदेव ख़ुद को हीरो बनाना चाहते थे... एक संन्यासी हीरो बनने निकल पड़ा था... इसके लिए बाबा रामदेव ने काले धन के मुद्दे की बकायदा मार्केटिंग की... देश के अमूमन हर हिस्से तक गए... हर व्यक्ति को काले धन के मुद्दे को समझाकर उसका समर्थन हासिल किया... ये समर्थन उन्हे उनके क़द को बढ़ाने में काम आता... बाबा का क़द तब तक बहुत ऊंचा भी हो गया था... जब तक कपिल सिब्बल ने वो चिट्ठी नहीं दिखाई... चिट्ठी सामने आते ही बाबा का सच सामने आ गया... और जब रामलीला मैदान में आंसू गैस के गोले चल रहे थे... लाठियां बरस रही थीं... उस वक़्त बाबा रामदेव का महिलाओं के कपड़े पहनकर भाग जाना भी उनकी उस लोकप्रियता को लीक कर देता है...

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