सत्याग्रह या हथियार


बाबा रामदेव ने सत्याग्रह को अपनी राजनीति का ज़रिया बनाया... भले ही अब रामदेव ये कह रहे हों कि वो चुनाव नहीं लड़ेंगे... प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे... राष्ट्रपति नहीं बनेंगे... लेकिन सच्चाई ये है कि रामदेव को राजनीति में क़दम रखना है... और एक बड़ा जन समर्थन हासिल करने के लिए उन्होने सत्याग्रह को हथियार बनाया.
काला धन को ज़रिया बनाकर जिस तरह से देश भर में एक संन्यासी सत्याग्रह की राह पर निकल पड़ा... वो बताता है कि बाबा रामदेव ने राजनीति का पाठ अच्छी तरह पढ़ लिया है... सत्याग्रह की जिस ताक़त से अंग्रेज़ों को हिंदुस्तान छोड़कर भागना पड़ सकता है... उस सत्याग्रह की ताक़त को मौजूदा राजनीति में इस्तेमाल करना... बाबा रामदेव से बेहतर शायद ही कोई जान सकता है...
अक्सर बाबा रामदेव कहते आए हैं कि उन्हे राजनीति में नहीं उतरना... लेकिन पिछले साल उन्होने संकेत दिए थे कि वो अपनी एक राजनीतिक पार्टी बनानेवाले हैं... बाबा की इस सोच ने भगवा ब्रिगेड में खलबली मचा दी थी... संघ परिवार ने किसी तरह से बाबा को मना तो लिया... लेकिन बाबा की सोच में उनकी राजनीतिक पार्टी ज़िंदा रही...
अक्सर जिसे राजनीति में उतरना होता है.... वो या तो किसी पार्टी का कार्यकर्ता बन जाता है या फिर अपनी राजनीतिक पार्टी बना लेता है... लेकिन बाबा ने इन दोनों से हटकर रणनीति बनाई... रामदेव की राजनीति शुरू हुई जनसमर्थन इकट्ठा करने से... अपनी छवि एक ऐसे व्यक्ति के तौर पर स्थापित करने से... जो जनता के लिए भूख हड़ताल भी कर सकता है...
बाबा रामदेव ने इसके लिए भारत स्वाभिमान अभियान शुरु किया... देश के कोने-कोने में... अमूमन हर राज्य में उन्होने कैंपेनिंग की... भारत में ऐसी कैंपेनिंग आज तक चुनाव के लिए भी किसी राजनेता नहीं की थी... बाबा ने सत्याग्रह की ताक़त का इस्तेमाल सियासत में किया... उन्हे इस ताक़त के बारे में पहले से पता था... उन्हे पता था कि सत्याग्रह के आगे सियासत के बड़े-बड़े सूरमा उनके आगे शीर्षासन करने लगेंगे...
जब सरकार किसी के सामने नतमस्तक हो जाए... तो समाज की नज़रों में उससे बड़ा शख़्स कौन हो सकता है... सरकार के आला मंत्री बाबा को मनाने में लगे थे... कभी एयरपोर्ट पर बैठक होती है.... तो कभी पांच सितारा माहौल में... बाबा का हर क़दम योजनाबद्ध तरीके से चल रहा है... सरकार का शीर्षासन हुआ... सरकार ने बाबा के अमूमन हर मांग को मान लिया... कई मुद्दों पर आश्वासन मिला... कई मुद्दों पर सहमति बन गई... फिर भी 4 जून को तय वक़्त पर बाबा रामदेव ने अनशन शुरू किया... सरकार से सहमति बनने के बाद भी बाबा का अनशन पर बैठना भी उनकी राजनीतिक मजबूरी थी... ये आख़िरी और सबसे अहम दांव था... जो बाबा रामदेव को देश के सबसे लोकप्रिय शख्स में बदल देता है... रामदेव को ने पूरे देश में सत्याग्रह की घोषणाएं की थीं... दिल्ली चलने का नारा भी दिया था... पूरे विश्व में लोगों को अनशन पर बैठने के लिए कहा था... बहुत सारे लोग तो अनशन शुरू होने के दो दिन पहले ही दिल्ली पहुंच गए थे... और बहुत सारे कूच कर चुके थे... ऐसे में बाबा... अनशन का कार्यक्रम रद्द करने की स्थिति में कतई नहीं थे... बाबा को अपनी साख बचाने के लिए आंदोलन की साख बचाना ज़रूरी था...
अब बाबा वो बाबा नहीं रहे... जो सिर्फ योग सीखाते हैं... अब बाबा राजयोग का पाठ देनेवाले बाबा बन चुके हैं...

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