हगामा है क्यो बरपा ...?

वरुण गांधी ने ऐसा क्या कह दिया कि देश में एक बहस चल निकाली कि वरुण ने गलत किया या उन्हें ऐसा नहीं कहना था ,पीलीभीत से भाजपा के उम्मीदवार वरुण ने आम - सभा मे अपने जज्बातों का इजहार करते हुए हिन्दू धर्म के शत्रुओं को चेतवानी दी थी कि - वे हिन्दुओं का अहित करने वाले हाथों को काट डालेंगे और एक अन्य धर्म के बारे मे अपने विचार जग - जाहिर किये थे इसमें ऐसी कौन-सी बात थी जो नयी हो ? या फिर इससे दूसरों को क्या नुकसान पहुंच रहा था कि पूरे देश में बहस चला दी गयी , वरुण अपनी जगह पूरी तरह से सही हैं , अगर वह अपने धर्म की हिफाजत करना चाहते हैं तो इस बात की उन्हें पूरी आजादी है और इसमें कोई बुराई भी नहीं है। इससे भी कड़ी जुबान का इस्तेमाल तो पहले आम चुनाव के दौरान और उसके पहले की सभाओं में राजनेता करते थे , कहा जा सकता है तब चुनावी नियम सरल थे और पाबन्दी भी कोई खास नहीं थी ' दरअसल 'धार्मिक और जातीय जहर एक सोच है , और चुनाव आयोग का नोटिस सोच पर पाबन्दी नहीं लगा सकता। इसके पहले भी पैसे बाटने वालों और गुजरात की चुनावी सभाओं के लिए श्रीमति सोनिया और श्री मोदी को जारी नोटिस का परिणाम देश देख चुका है। जिन चीजों के लिए दलों का पंजीयन रद्द किया जाना चाहिए था वहां चुनाव आयोग ने सुधार आयोग की भूमिका निभाकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली थी। 'वरुण तो फिर भी औरों के मुकाबले सही हैं कि - कम से कम उन्होंने अपनी सोच को बोल मे बदल दिया वरना दुनिया क्या जानती कि वरुण क्या सोचते हैं ? पर उनका अपना दिल दिखाना भी लोगों को नागवार गुजारा और तो और भाजपा और भाजपा के सहयोगी दलों के नेता भी उन्हें नसीहतें देने लगे। उनके मुताबिक चुनाव के समय ऐसी बातें नहीं कहनी चाहिए थी ! वरुण भी 'मेनका जी' बनने के बजाए " राज" बनना चाहते है तो इसमे हर्ज ही क्या है ? लोकतंत्र मे जितनी आजादी किसी भी नेता को है उतने के हकदार वरुण जी भी है। इस पर हंगामा करने जैसी कोई बात नजर नहीं आती। जावेद उस्मानी

टिप्पणियाँ

chunav aayog to munna bhai ke takale deen se bhee mushkil character ho gya, isliye ham to chup hee thik hain. narayan narayan
Malaya ने कहा…
यदि एक उम्मीदवार ईमानदारी से अपनी सोच को जाहिर करता है तो वह आचार संहिता का उल्लंघन है। लेकिन दूसरे लोग मस्जिदों के भीतर कट्टरता फैलाने के लिए बन्द दरवाजा मीटिंग करते हैं और साम्प्रदायिक सद्‌भाव बिगाड़ने की योजना बनाकर पूरा अमल करते हैं तो वह सेकुलर पार्टियों की आँखों के तारे बन जाते है।

मस्जिद से ईमाम साहब सियासी फतवा जारी करदें, आजमगढ़ के मुल्ला लोग इस्लामी पार्टी बनाकर ट्रेन बुक करा कर दिल्ली में अपनी ताकत का प्रदर्शन करें तो चुनाव आयोग शिखण्डी बन जाता है।
धत्‌।
बेनामी ने कहा…
सफलता पाने के लिए यही सोच चाहिए
मोदी का उदाहरण सामने है.
वरुण भी वही कर रहे हैं
Satish Chandra Satyarthi ने कहा…
आपकी बात से पूर्णतः सहमत हूँ पर वरुण की तुलना राज ठाकरे से करना सही नहीं है. वरुण ने किसी भी अन्य धर्म, जाती अथवा क्षेत्र के लोगों के लिए अपशब्द का प्रयोग नहीं किया है. और अपने धर्म की रक्षा करने का अधिकार सबको है. इस्लाम धर्म में भी इस्लाम के दुश्मनों के नाश करने को "जेहाद" का नाम दिया गया है.
बहुत सही लिखा ... भारत धर्म निरपेक्ष देश है ... पर सबों को अपना अपना धर्म मानने की तो आजादी है ... अपने अपने धर्म की रक्षा करने की तो आजादी है ... इसमें हंगामा किस बात का ।

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