ब्लाग विचार के साथ व्यभिचार

संजय तिवारी का पुराना लेख
पूत के पांव पालने में दिखते हैं. लेकिन पूत के पांव पालने तक पहुंचे इसके लिए पूत का स्वस्थ प्रसव होना जरूरी होता है. हिन्दी ब्लागरी के साथ ऐसा नहीं हुआ. हिन्दी ब्लाग प्रसव की पीड़ा झेलकर अस्तित्व में आये जरूर लेकिन आज ब्लाग एक अच्छे विचार के गर्भपात हो जाने जैसे हैं. किसी विचार का इतने कम समय में अप्रांसगिक हो जाना बहुत पीड़ादायक है. हिन्दी ब्लाग के विकास के लिए जिन औजारों का इस्तेमाल किया गया वही औजार इसके पतन के कारण भी हो गये.

ब्लाग शब्द से तात्पर्य निकलता है विचारों की मुक्त अभिव्यक्ति. पूरी दुनिया में इंटरनेट में हिस्सेदारी जताने के लिए जिन दो तत्वों ने सबसे बड़ी भूमिका निभाई है उसमें पहला है ईमेल और दूसरा है ब्लाग. सेना के दायरे से बाहर निकलकर इंटरनेट जब आम आदमी के हाथ में आया तो उसे शायद ठीक से पता भी नहीं था कि वह इस माध्यम का ठीक से कैसे उपयोग करे. एचटीएमल आधारित वेबसाईटों का नब्बे का दशक इसकी बड़ी उपयोगिता का रास्ता नहीं खोल रहा था. लेकिन उसी दौर में सर्च इंजनों का उदय हुआ. सबसे पहले याहू नाम से एक डायरेक्टरी शुरू हुई जो बाद में सर्च इंजन बन गया. कई और छोटे सर्च इंजन आये लेकिन गूगल के अस्तित्व में आने से पूरा खेल बदल गया. सर्च इंजन के तौर पर गूगल बड़ी तेजी से स्थापित हो रहा था लेकिन शायद उसके निवेशकों की चिंता गूगल को ज्यादा आधार देने की थी. इसलिए सबसे पहला और बड़ा प्रयोग गूगल ने ईमेल के रूप में किया. उसने ईमेल को सामान्य सूचना भेजने से आगे निकालकर उसे गूगल की समस्त सेवाओं का आधार बना दिया. ब्लागर उन्हीं सेवाओं में एक सेवा थी. हिन्दी ब्लाग का पतन उस हिन्दी समाज की कमजोरी की निशानी है जो संभावनाओं को हादसों में बदलने में सिद्धहस्त हैं.
जबकि होना यह चाहिए था कि हम चुनौतियों और हादसों को भी संभावनाओं में बदल देते.
ब्लागर का अस्तित्व भी और भी अनेक आविष्कारों की तरह ही एक गैराज से हुआ था. विचार यह था कि एक ऐसा वेव पेज बनाया जाए जहां सबके अपने पासवर्ड हों और लोग उस जगह आकर अपनी बात कह सकते हों. उनके विचार पर बहस हो सके. चर्चा हो सके. गूगल के चतुर निवेशकों ने ब्लागर की संभावनाओं को भांप लिया और इसे मुंहमांगी कीमत देकर खरीद लिया. गूगल ने एक और बड़ा काम यह किया कि उसने अपना सारा डाटाबेस यूनिकोड में तैयार करवाया जिसके कारण उसको दुनियाभर की भाषाओं में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का मौका मिल गया. हिन्दी को इसी यूनिकोड शब्दावली के कारण वेब पर व्यापक उपस्थिति का मौका मिला था और 2003 में ही हिन्दी का पहला ब्लाग अस्तित्व में आ गया था. २००५ और ०६ में यूनिकोड सुविधा और लिखने के मुफ्त स्थान के कारण अपना पैर जमाने में कामयाब हो गये.

ब्लागर की ही तर्ज पर एक और ब्लाग सेवाप्रदाता वर्डप्रेस ने भी मुफ्त में स्थान देना शुरू कर दिया और यहां भी यूनिकोड (यूटीएफ-८) का ही उपयोग होता था जिसके कारण यहां भी ब्लाग बनाये जा सकते थे. आज हिन्दी के ज्यादातर ब्लाग इन्हीं दो ब्लाग सेवा प्रदाताओं के प्लेटफार्म पर बने हैं. और विस्तार में जाने से पहले एक बात समझ लीजिए. ब्लाग असल में इंटरनेट की उस छिपी हुई ताकत से पनपे हैं जिन्हें सबडोमेन कहा जाता है. इंटनरनेट पर जब हम कोई वेबसाईट रजिस्टर्ड करते हैं तो वह हमें असीमीत सब-डोमेन बनाने की क्षमता भी प्रदान करता है. अगर हमारे सर्वर में जगह है तो हम किसी एक खास डोमेन लाखों, करोड़ों सबडोमेन बनाने की इजाजत दे सकते हैं. वर्डप्रेस, जो कि मुख्यरूप से ब्लाग लेखन के लिए सीएमस विकास के काम में लगी है, उसका मल्टीयूजर साफ्टवेयर इस्तेमाल करके कोई भी व्यक्ति अपने डोमेन पर असीमित ब्लाग बनाने की सुविधा दे सकता है. इसलिए अब ब्लाग कोई अचंभा नहीं हैं. यह एक सामान्य तकनीकि जोड़-तोड़ है और यह भी समझ में आने लगा है कि एक बड़े व्यावसायिक सोच का हिस्सा है. आप जिस डोमेन पर सबडोमेन के रूप में अपना ब्लाग बनाते हैं आपके द्वारा किये गये सारे काम-काज पर आखरकार उसी का दावा होता है. लेखक को यह सुविधा है कि उसे मुफ्त में तकनीकि, स्पेश और दूसरी सुविधाएं मिल जाती हैं और डोमेन मालिक को यह फायदा होता है कि उसका डोमेन तेजी से विकास करता है जिसका फायदा उसे दूसरे कई तरीकों से प्राप्त होता है.

यहां यह समझना जरूरी है कि हिन्दी ब्लागरों ने पहले चरण में जिस मुफ्त की सेवा का उपयोग किया उसके आगे का रास्ता क्या हो सकता था? उसके आगे दो रास्ते निकलते हैं. पहला, थोड़े दिनों में आप मुफ्त की सेवा से अपने आप को मुक्त कर लेते हैं और दूसरा जैसे ही ब्लाग का गणित आपकी समझ में आता है आप उसके आगे निकल जाते हैं. तीन-चार सालों का आप अगर हिन्दी ब्लाग का लेखा-जोखा लें तो आपको पता चलेगा कि यह गलत ट्रैक पर सरपट दौड़ती गाड़ी है जो गन्तव्य से उलट जा रही है. हिन्दी के पहले चरण में लोगों के सहयोग से खड़ा होने और दूसरों को खड़ा करने की मानसकिता काम कर रही थी. इसका नतीजा यह हुआ कि लोगों ने एक दूसरे को सहयोग करके हिन्दी ब्लागर की एक नयी जमात पैदा की. क्योंकि हिन्दी समाज केवल आर्थिक ही नहीं बल्कि तकनीकि रूप से पिछड़ा हुआ है इसलिए इस तरह का शुरूआती सहयोग हिन्दी ब्लागरी के लिए बहुत मददगार साबित हुआ. देखते ही देखते हिन्दी के सक्रिय ब्लागरों की संख्या हजारों में हो गयी. कल तक वेबसाईट का जो तिलिस्म केवल वेब डेपलपरों के कब्जे में था ब्लाग ने उसे तोड़ दिया. लोगों को एक ऐसा माध्यम मिल गया था जिसके जरिए वे अपने आप को अभिव्यक्त कर सकते थे. और लिखे को लोगों तक पहुंचाने के लिए एग्रीगेटर की कल्पना भी साकार हुई जहां सारे ब्लागरों के लिखे हुए को क्रम से एक जगह इकट्ठा किया जाता था. यह हिन्दी ब्लागों का अपना सर्च इंजन था.

यह दूसरी सेवा भी जब्जे से ओत-प्रोत थी. हिन्दी के चार प्रमुख एग्रीगेटर हैं जो केवल जब्जे से ही चल रहे हैं. इनके पीछे कोई व्यावसायिक गणित नहीं है. इसलिए लिखने से लेकर प्रचार तक हिन्दी के ब्लागों को ऐसा प्लेटफार्म मिल गया था जहां उनको किसी भी प्रकार का कोई पूंजीनिवेश नहीं करना था. लेकिन मुफ्त की यही मानसकिता हिन्दी ब्लागरी के लिए सुविधा के साथ-साथ संकट भी हो गयी. पूंजीवाद के इस भयानक युग में मुफ्त की ऐसी सेवाओं का क्या जनहित के लिए उपयोग हो सकता था? शायद सबसे अच्छा उपयोग हो सकता था. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. मुफ्त की वस्तु के साथ हम कैसा व्यवहार करते हैं? आमतौर पर हम उसकी कद्र नहीं करते. प्रकृति ने मनुष्य के लिए जो भी जरूरी है उसे मुफ्त ही उपलब्ध करवाया है. लेकिन मनुष्य सबसे ज्यादा अनादर उन्हीं निधियों का करता है जो उसे सहज और मुफ्त उपलब्ध हैं. ब्लाग भी ऐसी ही मानसिकता का शिकार हो गया. हमने इसे जनहित में उपयोग करने की बजाय निजी कुंठा और व्यक्तिगत दुराग्रह का माध्यम बना दिया. जाहिर सी बात है ऐसा कोई भी माध्यम कहीं नहीं जाता. ब्लाग जो नहीं कर पाये हो सकता है आनेवाले समय में हिन्दी वेबसाईटें वह काम कर सकें. वे शायद बेहतर नतीजा दे पायेंगी क्योंकि वे न तो मुक्त होंगे और न ही मुफ्त. ब्लाग के प्लेटफार्म से शुरू करके कुछ
वेबसाईटों ने इसकी पूरी संभावना दिखा दी है. फिलहाल तो ब्लाग ऐसे सांड़ की
शक्ल ले चुका है जिससे दूध की अपेक्षा करना हमारी निरा मूर्खता के अलावा
कुछ नहीं है.
ब्लाग नये मीडिया की संभावना लेकर आये थे. एक ऐसा मीडिया जो जिम्मेदार हाथों में जायेगा तो बहुत अर्थकारी परिणाम देगा. लेकिन आप ब्लाग को देखें तो साफ दिखता है कि यह गैर-जिम्मेदार हाथों में चला गया है. जिनसे उम्मीद थी उन्होंने ही इसे धता बता दिया है. ब्लागरी को बढ़ाने के जितने उपाय किये गये वही उपाय इसके पतन के कारण बनते जा रहे हैं. इसलिए पैदा होने के दो-चार साल में ही ब्लाग अनर्थकारी रूप धारण कर चुके हैं. इसका दोष तकनीकि को नहीं है. इसका दोष उनको भी नहीं है जो निजी उत्साह के कारण ब्लागरी को बढ़ाने का काम कर रहे थे. यह उस हिन्दी समाज की कमजोरी की निशानी है जो संभावनाओं को भी हादसों में तब्दील कर देने में सिद्धहस्त है. जबकि होना यह चाहिए कि हम हम चुनौतियों और हादसों को भी संभावनाओं में बदल देते. ब्लाग से आगे निकलकर वेबसाईट तक पहुंचने के रास्तों की तलाश हिन्दी को इंटरनेट की उस क्रांति से जोड़ देता जिसकी पूरी संभावना समाज और युग दोनों में मौजूद है. दुख के साथ ही सही यह मानना पड़ेगा कि फिलहाल हम यह मौका चूक गये हैं. एक अच्छे विचार के साथ हमने व्यभिचार किया है. हम ब्लाग को हिन्दी और समाज दोनों की बेहतरी का माध्यम बना सकते थे. हम वह नहीं कर पाये. लेकिन निराशा के इसी गर्भ में आशा के बीज भी छिपे हैं.

टिप्पणियाँ

Kavita Vachaknavee ने कहा…
सहज वैचारिक लेख!
कुछ सन्दर्भों में अस्पष्ट.
किन्तु प्रशंसनीय प्रयास।
Anshu Mali Rastogi ने कहा…
व्लॉग की रीति-नीति पर उम्दा लेख।
anuradha srivastav ने कहा…
विचारणीय लेख.........
Mohinder56 ने कहा…
प्रसव पीडा जितनी कष्टकारी होती है.. बच्चे से उतना ज्यादा प्यार होता है...
सब जानते हैं कि अच्छाई से बुराई का फ़ैलाव जल्दी होता है.. मगर उससे अच्छाई मर तो नहीं जाती.

जिसने जो जो लिखना है लिखेगा..जिसने जो जो पढना है पढेगा... यह एक बाजार है.. सब कुछ बिकता है
Unknown ने कहा…
जानकारी पूर्ण । लाभ है तो हानि होगी । अब हमारा ये दायित्व है कि हम इसे सकारात्मक दिशा में लेजायें । संजय जी को धन्यवाद ।
बेनामी ने कहा…
आपका विश्‍लेषण बहुत व्‍यवहारिक है। मुफ्त का चंदन विकार तो पैदा कर ही रहा है।
बहुत सुंदर आलेख लिखा .... हमें गंभीरतापमर्वक विचार करना चाहिए ... और हिन्‍दी ब्‍लागिंग को सही दिशा में ले जाना चाहिए।
अभिव्यक्ति कि सुन्दर प्रस्तुति । विचारो कि सहमती भिन्न विषय है, किन्तु आपने सुन्दर लिखा जो मुझे अच्छा लगा। हिन्दी ब्लोग जगत के विकास मे हम सभी मिलजुलकर कार्य करेगे तो भविष्य मे कमियो को दुर कर पायेगे। मेरी और से आपको मगल भावनाये।
अनूप शुक्ल ने कहा…
ब्लाग अभिव्यक्ति का एक माध्यम भर है। अच्छा-बुरा तो इसे प्रयोग करने वाले बना सकते हैं।

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