मास्टर ब्लास्टर या फिर मास्टर


राजेंद्र शर्मा
सचिन तेंदुलकर बल्लेबाजी के फन के मास्टर हैं... वो मास्टर हमेशा रहेंगे... टीम इंडिया के गोल लोगो वाली नीली जर्सी उतारकर बल्ले के बाय बाय कहने के बाद भी... ये वो तमगा है जो एक पारी, एक सीरीज़ या फिर एक सीज़न की कामयाबी से नहीं मिलता... सचिन को मास्टर का दर्जा देता है अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में दो दशक के बेहद कामयाब सफर...
जिसमें बैटिंग की कला को नई बुलंदियों पर ले जाता ये खिलाड़ी देखते ही देखते जीनियस हो जाता है... जीनियस के इसी सफर में बल्ले से उठता रनों का बवंडर सचिन रमेश तेंदुलकर को मास्टर-ब्लास्टर बना देता है...
फिर किरदार बदलता है... टीम की जरूरत बदलती है और फिटनेस के संघर्ष में खेलने का अंदाज बदलता है... लेकिन टीम इंडिया के लिए इस जीनियस की अहमियत नहीं बदलती...
इसकी काबिलियत पर सवाल हो ही नहीं सकते... लेकिन एक सवाल उठता है... वो सवाल वेलिंगट की पारी भी पूछती है... कि ये जीनियस... ये मास्टर... क्या अब भी ब्लास्टर है?..
या फिर मास्टर अपना काम कर रहा है और ब्लास्टर के किरदार में अब उसका ही कोई और जोड़ीदार बेहतर दिखता है...
जैसे सचिन के मास्टर होने पर सवाल नहीं हो सकते... वैसे ही क्या वक्त आ नहीं गया कि मान लिया जाए इस दौर का ब्लास्टर वीरेंद्र सहवाग ही है... वो सहवाग जो बड़ी ही सहजता से कह जाता है कि मैं रुकुंगा तो 50 ओवर में स्कोर 300 से पार ही होगा...
वही सहवाग मैदान पर उतरकर दिखा देता है कि ये एक खिलाड़ी का भरोसा है... जो कहता भी डंके की चोट पर है और करता भी डंके की चोट पर है...
कैसे बदलते हैं किरदार?... जब मास्टर और ब्लास्टर साथ मैदान पर होंगे... गेंदबाज़ों को शायद सचिन से सामना सकून भरा लगे.... सहवाग को वो नॉन-स्ट्राइकर एंड पर देखकर राहत महसूस करें...
आज सचिन की पारी वीरू के रनों की रफ्तार के साए में आगे बढ़ती है... लेकिन सचिन बड़े हैं और बड़े ही रहेंगे... सहवाग ये खुद कहते हैं, जो सीखा है जीनियस को देखकर सीखा है... जीनियस जैसा बनने की कोशिश जारी है...

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देखते हैं जी दोनों के जलवे।

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