कितने इंडिया और किसका
जेठ की दोपहर
बरगद की छांव
नदी का किनारा
उडती धूल, हीरे सा
यही है मेरा गांव
ये कविता देखी एक टीवी चैनल के एक प्रोमो में, अच्छी लगी, न्यूज चैनलो में इंडिया लगाने की होड लगी है। NDTV इंडिया , इंडिया टीवी, लाइव इंडिया, इंडिया लाइव और अब इंडिया न्यूज...साथ में इंडिया बोल....सुना है कि अभी इंडिया नाम से कई चैनल कतार में है। लेकिन पत्रकारिता के लंबरदार ये चैनल इंडिया के पीछे क्यो पडे है, इतने इंडिया में मौलिकता कहां रह जायेगी, और कैसे रह पायेगी...कई सवाल है, शायद हम सब दोषी है, मार्केट के इस युग में सब चलता है, भेड चाल तो खूब।
बरगद की छांव
नदी का किनारा
उडती धूल, हीरे सा
यही है मेरा गांव
ये कविता देखी एक टीवी चैनल के एक प्रोमो में, अच्छी लगी, न्यूज चैनलो में इंडिया लगाने की होड लगी है। NDTV इंडिया , इंडिया टीवी, लाइव इंडिया, इंडिया लाइव और अब इंडिया न्यूज...साथ में इंडिया बोल....सुना है कि अभी इंडिया नाम से कई चैनल कतार में है। लेकिन पत्रकारिता के लंबरदार ये चैनल इंडिया के पीछे क्यो पडे है, इतने इंडिया में मौलिकता कहां रह जायेगी, और कैसे रह पायेगी...कई सवाल है, शायद हम सब दोषी है, मार्केट के इस युग में सब चलता है, भेड चाल तो खूब।
टिप्पणियाँ
पर इंडिया की फिकर किसी को नहीं
सबको है बस पैसा कमाना
देश की फिकर किसी को नहीं
( पुनेठाजी आपको बख्श दिया है, क्यूंकि अभी तक ब्लॉग से तो किसी ने अपना नेट का बिल चुका दिया हो वही बहुत। )