मार लिया मैदान




ब्रिसबेन की पिच....इस पिच पर फेंकी जा रही कोई भी गेंद महज गेंद नहीं थी....इस गेंद पर झपटता बल्ला महज बल्ला भर नहीं था.....ब्रिसबेन की पिच जंग का मैदान थी...हिन्दुस्तान आर-पार की लड़ाई लड़ रहा था....टीम इंडिया का एक एक खिलाड़ी कल मोर्चे पर डटा फौजी था....टीम इंडिया का हर फौजी जीत के लिए नहीं तिरंगे के गरुर को बचाने के लिए अपना वार कर रहा था...इस टीम पर नस्लभेद के आरोप थे...और टीम को बताना था कि हम उस देश के वासी हैं जहां नस्लभेद नहीं गंगा जमुनी तहजीब की रिवायत है...टीम इंडिया को नामुराद जंगली झाड़ी कहा गया था..और.टीम इंडिया को बताना था कि सभ्यता के इतिहास में हमारी दखल पांच हजार साल से है...ब्रिसबेन का मैदान महज क्रिकेट का मैदान नहीं था....इस मैदान पर कल दो सभ्यताओं की जंग लड़ी जा रही थी....एक तरफ दूसरे को ओछा और नीचा बताने वाली सभ्यता थी...दूसरी तरफ सबको अमन का पैगाम देने वाली सभ्यता थी....ब्रिसबेन की पिच पर यह जंग आखिरी ओवर तक चली...सचिन का बल्ला चला...प्रवीण का लहर मारता तूफान चला...इरफान की आंधी चली....और जंग जीत के जश्न में बदल गई....यह जीत सभ्यताओं के संघर्ष में अमन की जीत का ऐलान थी....

टिप्पणियाँ

Deepak Sethi ने कहा…
bahut hi achcha likha hai!
समयचक्र ने कहा…
bahut badhiya jeet ki apko bhi badhai
Udan Tashtari ने कहा…
बधाई हो जी!! जीत गये.....
gautam yadav ने कहा…
बडे भाई, खेल को खेल ही रहने दीजिए सभ्यताओं के संघ्रस का अखाडा मत घोषित कीजिए। अगर खुदा न खास्ता टीम इंडिया सीरिज हार जाती तो क्या यह हमारी अमन पसंद भारतीय सभ्यता की ऑस्ट्रेलियाई बर्बर और असहिशिष्णु सभ्यता के विरुद्ध हार मानी जाती।

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