हाकी की हार पर इतना हाय तौबा क्यों



भारतीय हाकी टीम चिली में हुये ओलंपिक क्वालिफायर के फाइनल में ब्रिटेन से हार गयी। पूरे देश में हंगामा मच गया। टीवी चैनल्स ने आसमान सर पर उठा लिया। लगा कि जैसे पता नही कोई एसा काम हो गया, जिस की कल्पना भी नही की गयी थी। दरअसल ये तो होना भी था। और होना भी चाहिये। ये हाकी के लिये भी बेहतर है। कब तक हम मेजर ध्यानचंद , रूप सिंह, अजीत सिंह, शाहिद , इकबाल परगट सिंह जैसो के नाम की आक्सीजन का सहारा लेते रहेंगे। हाकी जिस रसातल में गयी हुयी है। उसे निकालने के लिये आये दिन कोई ना कोई आपरेशन हम सुनते रहते है। जिस हाकी फैडरेशन की कुर्सी पर गिल जैसा आदमी विराजमान हो। जिस हाकी के नाम पर खेल मंत्री ये कहे कि वो कुछ नही कर सकते। उस खेल का भविष्य क्या होगा। इसके दोषी हम और आप भी है। टीवी चैन्लस को 24 धंटे खबर चाहिये। लिहाजा वो खबर दिखा सकते है। लेकिन जिस देश का राष्टीय खेल के लिये पैसो से लेकर सुविधाओ का संधर्ष है। वो खेल क्या सुधरेगा। IPL और ICL में किस तरह पैसा वहा, क्या कभी एसा हाकी में हो पायेगा। इसके दोषी हम सब है। यदि क्रिकेट को लेकर पागल रहेंगे तो बाकी खेल सरकार के रहमो करम पर ही पलेंगे। वो जुनून वो जज्बा हाकी में क्यो नही है। क्यो विजय मलाया हाकी की जीत या फिर किसी दुसरी बडी जीत पर अपना विशेष विमान क्यो नही भेजते। ये संकेत है। बीमारी अपने आप समझ आ जायेगी। क्रिकेट बोर्ड के पद पर बैठने के लिये शरद पवार और डालमियां में जिस तरह मारामारी रही। वो जाहिर है। क्या गिल को हटाने के लिये कोई आगे आया। नही ...यदि कोई इंसान ज्यादा बीमार हो जाये तो कब तक उसे वैंटिलेटर पर रखकर जिंदा रखोगे। उससे बेहतर उसे मर जाना चाहिये। हाकी आजादी की जंग में देश के जज्बे का प्रतीक था। देश आजाद हो गया , तो वो जज्बा भी गया। ये कैपिटलइंज्म का दौर है। माल कल्चर और मेट्रो की बदलती तस्वीर की बात होती है। कौन कालाहांडी और दंतेवाडा की बात करेगा। हां Inteluctual Masturbation होगा। सरकार कुछ पैसा देदेगी। लोग चर्चा करेगे। लेकिन होगा कुछ नही। ये बात लोगो को बुरी लग सकती है। लेकिन मेरी नजर में सच्चाई है। आज कोई भी अपने बच्चो को हाकी खिलाडी नही बनाना चाहता । देश में क्रिकेट एकेडमी में जाते बच्चे कुछ संकेत देते है। बाजार उधर है। हाकी या बाकी खेलो में नही , तो होगा तो यही, चाहे हम और आप कितना भी रो ले। जरूरत सोच में बदलाव की है। तभी हाकी बदलेगी। सरकारी मदद से तस्वीर नही बदलेगी।

टिप्पणियाँ

राजीव जैन ने कहा…
गुरुवर
सत्‍यवचन सब लोग उम्‍मीदों के बोझ तली बेचारी हॉकी बेकार ही पिल पडे, एसे फालतुओं में मीडिया भी शामिल है। हॉकी टीम जीतती थी तो स्‍पोटर्स पेज की खबर होती है। टीवी में तो शायद ही कभी दिखाई दे, दूरदर्शन को छोड दें तो पर अब गरियाना का मौका आया तो सब पिल पडे। अरे आज जितना स्‍पेस पहले कभी दिया होता तो हॉकी की यह दुदर्शा ही नहीं होती।
क्योंकि हंगामे के लिए इन दिनों हमारे पास कोई और मुद्दा नहीं है.
अबरार अहमद ने कहा…
अनुराग जी आपकी बात बिल्कुल सही है। हाकी का यह हाल हमने ही किया है। इस लिंक पर भी जरा नजरेइनायत कर लें
www.hamarelafz.blogspot.com
VIMAL VERMA ने कहा…
वाकई मैं भी अपनी नारज़गी ही बयान करने वाला था, पर आपने भिन्न नज़रिया पेश करके कमसे कम हमारा तो मन हल्का कर दिया बहुत बहुत शुक्रिया दोस्त ।

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