अब कंहा आते है डाकिये
सूरत में निदा फाजली ने दोहा सुनाया...
सीधा साधा डाकिया काम करे महान...
एक ही थैले में भरे , आंसू और मुस्कान...
ये शेर निदा साहब ने चिठ्ठी और खतो की महत्ता के बारे में लिखा...खूब तालियां बजी...सब नास्टलिजिक हो गये...मैं भी हुआ..क्योकि जब बडा हुआ तो पापा ने चिठ्ठी लिखने पर खूब जोर दिया...पढने बाहर गया तो पापा का सख्त निर्देश था कि हर हफ्ते चिठ्ठी आनी चाहिये...लिखता रहा,मेरा एक दोस्त इंजीनियरिंग की पढाई करने चला गया था., तो संवाद का जरिया खतो खिताबत ही होते थे...लेकिन.... अब कंहा आते है डाकिये...और कंहा होता है उनका इंतजार...कंहा लिखे जाते है गांवो की औरतो की पीडा के गीत...डाकिया डाक लाया राजेश खन्ना के साथ ही चला गया...हाँ डाकिया की शक्ल में कुरियर एजेंट आते हैं, जो मोबाइल बिल लाते हैं या क्रेडिट कार्ड का स्टेटमेंट...अपना या पराया अब चिट्ठी नही लिखता ...आज तो मोबाइल और एसएमएस का जमाना है...मोबाइल की पंहुच की बात करते विञापन है...खेतो में काम करते किसान मोबाइल पर बतियाते दिखायी देते है...ट्रेन में बैठे मुंबई जाते श्रेयस तलपडे अपने गांव में रहते पिता से कहते है कि चिंता मत करना...इस बार मे खोउगा नही....तकनीक ने खूब तरक्की की है....चट में बात...SMS से पट में I LOVE U कहने का चलन ने दिल की बात कहने के लिये कागज़ के पन्नो को खराब करने का दर्द और मजा किरकिरा कर दिया है...मेरे दोस्त ने मथुरा में कॉलेज के दिनो में हमारे साथ पढने वाली लडकी , जिस पर उनका दिल आ गया था, उसे हाले दिल बताने के लिये खत लिखना चाहा, तय ये हुआ कि मिल बैठकर खत का मजमून लिखेगे...और दोस्तो उस खत को मैने छुट्टी की अर्जी बना दी थी...क्या हाल हुआ होगा,आप अंदाजा लगा सकते है....सालो के बाद भी मैं आज उस दोस्त से गाली खाता हूं...और जमकर हंसी मजाक होता है... लेकिन ये भूले बिसरी यादें है, जो निदा फाजली के दोहे ने ताजा कर दी ,,वरना लोग कहेंगे कि ज्यादा सैंटी हो रहा है....
सीधा साधा डाकिया काम करे महान...
एक ही थैले में भरे , आंसू और मुस्कान...
ये शेर निदा साहब ने चिठ्ठी और खतो की महत्ता के बारे में लिखा...खूब तालियां बजी...सब नास्टलिजिक हो गये...मैं भी हुआ..क्योकि जब बडा हुआ तो पापा ने चिठ्ठी लिखने पर खूब जोर दिया...पढने बाहर गया तो पापा का सख्त निर्देश था कि हर हफ्ते चिठ्ठी आनी चाहिये...लिखता रहा,मेरा एक दोस्त इंजीनियरिंग की पढाई करने चला गया था., तो संवाद का जरिया खतो खिताबत ही होते थे...लेकिन.... अब कंहा आते है डाकिये...और कंहा होता है उनका इंतजार...कंहा लिखे जाते है गांवो की औरतो की पीडा के गीत...डाकिया डाक लाया राजेश खन्ना के साथ ही चला गया...हाँ डाकिया की शक्ल में कुरियर एजेंट आते हैं, जो मोबाइल बिल लाते हैं या क्रेडिट कार्ड का स्टेटमेंट...अपना या पराया अब चिट्ठी नही लिखता ...आज तो मोबाइल और एसएमएस का जमाना है...मोबाइल की पंहुच की बात करते विञापन है...खेतो में काम करते किसान मोबाइल पर बतियाते दिखायी देते है...ट्रेन में बैठे मुंबई जाते श्रेयस तलपडे अपने गांव में रहते पिता से कहते है कि चिंता मत करना...इस बार मे खोउगा नही....तकनीक ने खूब तरक्की की है....चट में बात...SMS से पट में I LOVE U कहने का चलन ने दिल की बात कहने के लिये कागज़ के पन्नो को खराब करने का दर्द और मजा किरकिरा कर दिया है...मेरे दोस्त ने मथुरा में कॉलेज के दिनो में हमारे साथ पढने वाली लडकी , जिस पर उनका दिल आ गया था, उसे हाले दिल बताने के लिये खत लिखना चाहा, तय ये हुआ कि मिल बैठकर खत का मजमून लिखेगे...और दोस्तो उस खत को मैने छुट्टी की अर्जी बना दी थी...क्या हाल हुआ होगा,आप अंदाजा लगा सकते है....सालो के बाद भी मैं आज उस दोस्त से गाली खाता हूं...और जमकर हंसी मजाक होता है... लेकिन ये भूले बिसरी यादें है, जो निदा फाजली के दोहे ने ताजा कर दी ,,वरना लोग कहेंगे कि ज्यादा सैंटी हो रहा है....
टिप्पणियाँ
पर फ़िर भी अब हम लोग चिट्ठी नही लिखते है ।