ये लड़ाई साख और सच की नहीं

अगर आतंकवाद के कारण भारतीय उपमहाद्वीप में क्रिकेट का बलिदान हुआ, तो वह काफ़ी दुखद दिन होगा. हो सकता है ऐसा पहले ही शुरू हो चुका हो और पाकिस्तान तो इसका असर झेल ही रहा है.
भारत भी इससे बहुत पीछे नहीं. अगर क्रिकेट के आका इस हालत से निपटने के लिए सावधानी और संवेदनशीलता से आगे नहीं आए तो करोड़ों रुपए की ये इंडस्ट्री में ठहराव आ सकता है.
ये कोई नहीं चाहता कि इस साल इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) का आयोजन नहीं होना चाहिए. लेकिन लाहौर की घटना के बाद ये बहस ज़रूर शुरू हो गई है कि आम चुनाव के दौरान आईपीएल का आयोजन क्या बुद्धिमानी है.
क्योंकि हो सकता है कि प्रतियोगिता के दौरान राज्य पर्याप्त सुरक्षाकर्मी नहीं दे पाए. अब तो क्रिकेटर भी निशाने पर हैं और जो लोग क्रिकेट के साथ-साथ लोगों की ज़िंदगी का भी ख़्याल करते हैं, वे चिंतित हैं.
दुर्भाग्यपूर्ण
लेकिन दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण बात ये है कि क्रिकेट प्रशासक और टीमों के मालिक नुक़सान की आशंका से इतने चिंतित हैं कि वे किसी भी क़ीमत पर मैचों का आयोजन कराना चाहते हैं, भले ही इसके लिए उन्हें राज्यों पर दबाव ही क्यों न डालना पड़े.
उनके अड़ियल रवैए की एक वजह ये भी है कि अगर प्रतियोगिता स्थगित होती है तो फिर इस साल इसका आयोजन नहीं हो सकता क्योंकि आगे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट का व्यस्त कार्यक्रम है और आईपीएल के लिए तारीख़े तय करना मुश्किल है.
क्रिकेट के नज़रिए से देखें तो बोर्ड, उद्योग जगत, खिलाड़ियों और प्रशंसकों- सभी के लिए यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है. क्रिकेट बोर्ड को वित्तीय नुक़सान होगा ही, सबसे अहम बात ये है कि अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में उसकी हैसियत भी कम होगी. साथ ही शक्तिशाली भारतीय बोर्ड की शक्ति भी कम हो जाएगी.
टीमों के मालिकों की बात करें तो मंदी के कारण वे पहले से ही काफ़ी नुक़सान झेल रहे हैं, अगर आईपीएल का आयोजन नहीं हुआ तो उन्हें दोहरा झटका लगेगा. वित्तीय नुक़सान के साथ-साथ ब्रांड प्रोमोशन का मौक़ा भी उनके हाथ से निकल जाएगा.
नुक़सान
खिलाड़ियों को भी अच्छा-ख़ासा नुक़सान होगा तो क्रिकेट प्रेमी 40 दिनों के मनोरंजक मैचों का आनंद नहीं ले पाएँगे.
यहाँ खेल बिगाड़ने की ज़िम्मेदारी भारतीय राज्यों पर डाली जा रही है और प्रोमोटर्स के नज़रिए से देखें तो राज्यों को मतदान की तारीख़ आगे बढ़ा देनी चाहिए.
इन सब बहसों के बीच मुझे अचरज इस बात पर होता है कि कुछ बोर्ड अधिकारी सुरक्षा चिंता को बड़ी बेशर्मी से ख़ारिज कर रहे हैं. वे तो प्राइवेट सुरक्षा के दम पर मैचों का आयोजन भी करा सकते हैं और उनके पास इसके लिए पैसा भी है.
वे तो ऐसी धारणा बना रहे हैं जैसे राज्य ही सबसे बड़ी रुकावट हैं और इतने कमज़ोर हैं कि वे लोगों (आप आईपीएल समझिए) के हितों की रक्षा भी नहीं कर सकते.
आईपीएल पर हो रही बहस को राष्ट्रीय अस्मिता से जोड़ा जा रहा है. हमें ये बताया जा रहा है कि अगर आईपीएल का आयोजन नहीं हुआ तो भारत की छवि प्रभावित होगी.
मैं नहीं जानता था कि मेरी राष्ट्रीय पहचान पंजाब किंग्स इलेवन के राजस्थान रॉयल्स के खेलने के साथ और इस मैच के ज़रिए प्रोमोट किए जा रहे ब्रांड से जुड़ी हुई है.
लेकिन ऐसे कई लोग हैं जो इस तर्क को मानने को तैयार हैं और ये उन लोगों की जीत है जो बेचना जानते हैं भले ही एक दिन बिकने वाला आपका अपना देश ही क्यों न हो.

प्रदीप मैगज़ीन
वरिष्ठ खेल पत्रकार (लेखक हिंदुस्तान टाइम्स के खेल सलाहकार हैं)

टिप्पणियाँ

भारतीय राज्यों को इस बात की कोई परवाह नहीं है. अगर होती तो पहले वे अपनी आम जनता को देसी-बिदेसी आतंकवाद से बचातीं. आइपीएल तो बहुत बाद की बात है.

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