समुद्र के अम्लीय होने से खतरा

ब्रिटेन में किए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि मानवीय क्रियाकलापों के कारण समुद्र में अम्ल की मात्रा बढ़ती जा रही है जिससे बड़े पैमाने पर समुद्री जीवन के विलुप्त होने का ख़तरा है.
इस शोध के अनुसार आधुनिक समाज में कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन के कारण समुद्र पिछले पाँच लाख साल में सबसे अधिक अम्लीय हो गए हैं.
इस शोध से जुड़ी प्लेमथ मैरीन प्रयोगशाला की वरिष्ठ वैज्ञानिक कैरोल टर्ली ने बताया कि शोध यूरोप में अठारहवीं शताब्दी में आई औद्योगिक क्रांति के बाद समुद्र क़रीब तीन गुना अधिक अम्लीय हो गए हैं.
डॉक्टर टर्ली ने बताया कि ये जानना मुश्किल है कि समुद्री जीव-जंतु-वनस्पति कैसे इस समस्या से निबटेंगे लेकिन इस बात की आशंका है कि समुद्र के अम्लीय होने से अनेक समुद्री जीव नहीं बच सकेंगे.
अध्ययन के मुताबिक़ समस्या के और भी गंभीर होने का ख़तरा है, क्योंकि 21वीं शताब्दी में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ा है.
समुद्री जीव ख़तरे में
डॉक्टर टर्ली ने बीबीसी को बताया, "मैं समझती हूँ कि हमलोग बड़े पैमाने पर समुद्री जीव के विलुप्त होने का सामना करेंगे. क्योंकि डायनासोर के विलुप्त होने के बाद समुद्री बदलाव के दर को नहीं देखा गया."
उन्होंने कहा, "हो सकता है कि इसका प्रभाव बड़े पैमाने पर खाद्य सुरक्षा पर पड़ सकता है. यह बहुत ज़रूरी है कि हमलोग कार्बन डाईऑक्साइड के उत्सर्जन में कटौती करें."
कैरॉल ट्रर्ली डैनमार्क की राजधानी कॉपेनहैग में समुद्री के अम्लीय होने पर हो रही एक चर्चा की अध्यक्षता कर रही हैं.
उन्होंने बताया कि समुद्र के अम्लीय होने की वजह से उन जीवों पर अधिक प्रभाव पड़ेगा जिनकी त्वचा (शेल) कैल्शियम की बनी होती है.
शोध के अनुसार अगर अम्लीय होने की यही दर रही तो स्टारफ़िश इस शताब्दी के अंत तक ख़त्म हो सकता है.
वैज्ञानिकों को डर है कि सीप भी इसके असर से वंचित नहीं रह सकते.
कैरॉल ट्रर्ली का कहना है, "एक बात निश्चित है, चीज़ें बदलेंगी. इस समय हम ये नहीं जानते कि निश्चित तौर पर ये कैसे बदलेंगी."
एक अन्य वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर एंडी वॉटसन को लगता है कि जलवायु परिवर्तन और अधिक मछलियों को मारे जाने के कारण समुद्र अम्लीय हों उससे पहले ही बर्बाद हो जाएँगे.
एंडी वॉटसन ने समुद्र के अम्लीय होने के लिए मानव गतिविधियों के ज़िम्मेदार ठहराने की निंदा करते हैं, उनका कहना है कि समुद्र के अम्ल की मात्रा प्राकृतिक कारणों से भी बदलती रहती हैं.
हालाँकि एक दूसरे वैज्ञानिक टॉनी नैप अपने अध्ययन का बचाव करते हुए कहते हैं, "अगर आप आँकड़े को देखें तो आप को लगेगा कि इससे अलग कोई दूसरा निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता था।"

साभार बीबीसी

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