महंगाई पीड़ित लेखक का ख़त

नीरज बधवार

सम्पादक महोदय,
पिछले दिनों महंगाई पर आपके यहां काफी कुछ पढ़ा। कितने ही सम्पादकीयों में आपने इसका ज़िक्र किया। लोगों को बताया कि किस तरह सरिया, सब्ज़ी, सरसों का तेल सब महंगे हुए हैं और इस महंगाई से आम आदमी कितना परेशान है। ये सब छाप कर आपने जो हिम्मत दिखाई है उसके लिए साधुवाद। हिम्मत इसलिए कि ये सब कह आपने अनजाने में ही सही अपने स्तम्भकारों के सामने ये कबूल तो किया कि महंगाई बढ़ी है।

दो हज़ार पांच में महंगाई दर दो फीसदी थी, तब आप मुझे एक लेख के चार सौ रुपये दिया करते थे, यही दर अब सात फीसदी हो गई है लेकिन अब भी मैं चार सौ पर अटका हूं।

आप ये तो मानते हैं कि भारत में महंगाई बढ़ी है, मगर ये क्यों नहीं मानते कि मैं भारत में ही रहता हूं? आपको क्या लगता है कि मैं थिम्पू में रहता हूं और वहीं से रचनाएं फैक्स करता हूं? बौद्ध भिक्षुओं के साथ सुबह-शाम योग करता हूं? फल खाता हूं, पहाड़ों का पानी पीता हूं और रात को 'अनजाने में हुई भूल' के लिए ईश्वर से माफी मांग कर सो जाता हूं! या फिर आपकी जानकारी में मैं हवा-पानी का ब्रेंड एम्बेसडर हूं। जो यहां-वहां घूम कर लोगों को बताता है कि मेरी तरह आप भी सिर्फ हवा खाकर और पानी पीकर ज़िंदा रह सकते हैं।

महोदय, यकीन मानिये मैंने आध्यात्म के ‘एके 47’ से वक़्त-बेवक़्त उठने वाली तमाम इच्छाओं को चुन-चुन कर भून डाला है। फिर भी भूख लगने की जैविक प्रक्रिया और कपड़े पहनने की दकियानूसी सामाजिक परम्परा के हाथों मजबूर हूं। ये सुनकर सिर शर्म से झुक जाता है कि आलू जैसों के दाम चार रुपये से बढ़कर, बारह रुपये किलो हो गए, मगर मैं वहीं का वहीं हूं। सोचता हूं क्या मैं आलू से भी गया-गुज़रा हूं। आप कब तक मुझे सब्ज़ी के साथ मिलने वाला 'मुफ़्त धनिया' मानते रहेंगे। अब तो धनिया भी सब्ज़ी के साथ मुफ्त मिलना बंद हो गया है।


नमस्कार।
इसके बाद लेखक ने ख़त सम्पादक को भेज दिया। बड़ी उम्मीद में दो दिन बाद उनकी राय जानने के लिए फोन किया। 'श्रीमान, आपको मेरी चिट्ठी मिली।' 'हां मिली।' 'अच्छा तो क्या राय है आपकी।' 'हूं.....बाकी सब तो ठीक है, मगर 'प्रूफ की ग़लतियां’ बहुत है, कम से कम भेजने से पहले एक बार पढ़ तो लिया करो!




टिप्पणियाँ

बधाई। संपादक जी को लिखे पत्र और बाद की फुनियाई बातचीत को उजागर करने के लिए। दरअसल संपादक जी, बिचारे क्या कहें वे भी नौकर ही हैं। जरा सम्पर्क हो जाए तो मालिक से भी चिट्ठीबाजी और फुनियाई कर लो।
Neeraj Badhwar ने कहा…
ज़रुर करेंगे दिनेश जी। खैर, रिस्पांस के लिए शुक्रिया।

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