क्रिकेट के बदलते किले


होबार्ट का मैदान....क्रीज पर बल्ला थामे दुनिया को अपनी फिरकी से नचाने वाला एक महानायक...मुथैया मुरलीधरन....लेकिन मुरलीधरन को गेंद फेंकनेवाला विश्व क्रिकेट का एक गुमनाम चेहरा है...इस मैच से पहले इस गेंदबाज ने महज दो वन डे खेले हैं...उसके हाथ से गेंद किसी गोले की तरह छूटती है...और मुरलीधरन के डंडे जमीन छोड़ देते हैं...मुरलीधरन का विकेट गिरा तो हिन्दुस्तानी क्रिकेट के आकाश में एक नये सितारे का उदय हुआ...दुनिया के दिग्गज स्पिनर को जब इस तेज गेंदबाज ने पवेलियन की राह पकड़ायी तो होबार्ट की पिच ने गवाही दी कि अब हिन्दुस्तानी क्रिकेट के किले महानगरों से सरक कर कस्बों में जा रहे हैं...
संकोच में मुठ्ठी बांधे...अपने अटपटेपन को अंगुलियों के उलझाव में छुपाते...इस सितारे के बालों पर अभी कस्बे का सीधापन मौजूद है...इसके चेहरा गली के मोड़ पर चाय सुड़कते किसी कस्बाई नौजवान का चेहरा है...इस चेहरे का सादापन अभी एड गुरुओं की नजर में नहीं चढ़ा है...लेकिन इस चेहरे में हिन्दुस्तानी क्रिकेट के सबसे जहीन कमेंटेटर ने एक खामोश तूफान देख लिया है...प्रवीण कुमार...मैन आफ दी मैच...लेकिन इसे क्रिकेट के ग्लैमर की भाषा अंग्रेजी नहीं आती...अनुवाद के लिए खुद कप्तान को आना पड़ता है...
जी हां...प्रवीण कस्बे का है...उसने क्रिकेट को टेलीविजन देख देख के सीखा है... हिन्दुस्तानी क्रिकेट का यह सादा चेहरा इस बात का खुला एलान है कि देश में क्रिकेट के गढ़ अब कस्बों की तरफ खिसक रहे हैं....इस बात की तस्दीक बल्ले का एक बादशाह -सुनील गावस्कर खुद रहा है...

किले क्रिकेट के ही नहीं सियासत के भी बदले हैं...सत्ता अब दिल्ली से नहीं...दिल्ली से दूर बसे सूबों की सियासत से बनती बिगड़ती है.....लालू...माया...मुलायम...चंद्रबाबू हमारे लोकतंत्र के सूबाई दावेदार हैं...रेलबजट अब अंग्रेजी में नहीं हिन्दी में पढ़ा जाता है...जी हां..जिस दौर में दिल्ली की सियासत से पुराने दिग्गजों का दबदबा खत्म हुआ उसी दौर में हिन्दुस्तानी क्रिकेट पर भी कस्बे का रंग चढ़ा.....सियासत के पुराने दिग्गजों की तरह क्रिकेट के एक दिग्गज ने भी इस कस्बाई चेहरे को अपने अंदाज में सलाम किया..
ये गवास्कर थे...हिन्दुस्तानी क्रिकेट के इतिहासनिर्माता....इस चेहरे ने जब प्रवीण से अपना अपनापा जोड़ा तो देश फाइनल ही में नहीं पहुंचा...देश में क्रिकेट का समाजशास्त्र भी बदल गया....

टिप्पणियाँ

दिलीप मंडल ने कहा…
गजब का लिखा है अनुराग भाई। क्रिकेट पर पढ़ने के लिए वन स्टॉप शॉप चाहिए। आप कर सकते हैं।
Unknown ने कहा…
वैसे तो हम आप के बोलने के अन्दाज़ पर फ़िदा थे
अब तो लिखने पे भी. भाई वह लिखते रहो गुरु
Unknown ने कहा…
अभी तक तो हम आपके बोलने पर फ़िदा थे और अब लिखने पर भी हो गये
भाई वह .गुरु लगे रहो
बेनामी ने कहा…
anurag ji aap ki lekhani aachi lagi. - aap ka tulsi
gautam yadav ने कहा…
छोटे -छोटे सहरों से हम तो झोला उठाकर चले । आज चाहे इलाहाबाद का निखिल चतुर्वेदी फिल्मों मे हीरों तो बीकानेर का संदीप इंडियन आइडल हो गया । शिव शंकर चौरसिया गोल्फ विजेता बना तो गाँव-कस्बों के किसानों ने महेन्द्र संघ टिकेट के साथ मिलकर देल्ही हिला दी । चाहे खेल का मैदान हो ,बिजनेस या इंजीनिरिंग हो ,राजनीती का अखाडा हो या कला का मंच । हर एरिया मे इन छोटे सहरों और गाँव कस्बों के बंटी और बब्लीओं ने अपनी उपस्तिथि दर्ज कराई है । प्रवीण कुमार समाज मे आ रहे इन बदलावों का एक प्रतीकात्मक चेहरा हैं।
बेनामी ने कहा…
dost, muje ye samaz nahe aata, ke aap log cricket ke alava kese aue khel ko khel kyun nahe mante, jese deko cricket ke he baat karta hai, muhe lagata hai, aane wala commenwelth game easka muahtod javab denge, vase lekhte aacha ho, mahesh kumar
बेनामी ने कहा…
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बेनामी ने कहा…
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Unknown ने कहा…
Its wonderful, I read our article in a hindi daily. Your style of presentation is wonderful. Kudos.

Regards,
Amol
http://iclipboard.blogspot.com

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