सपने जिनकी ताबीर नही होते

शम्स तनवीर

वे सपने
जिनकी ताबीर नही होते
उनके सहारे भी
लोग जीते है यहाँ
और इन्ही सपनो के सौदागर
सियासत की बागडोर संभालते है
जो जितना बडा सपना दिखायेगा
वह उतना ही उंचा मुकाम पायेगा
गौरतलब है
ये वे सपने है
जिनकी ताबीर नही होते

वे लोग
जो इन सपनो के सहारे जीते है
इस सौदागर को पलको पर बिठाते है
ये लोग दिखाये गये
सपनो के एवज में
चीख चीख कर
नारे लगाते है
और एक दूसरे के
खून के प्यासे हो जाते है
सिर पर कफन
और हाथो मे बंदूक लिये फिरते हैं.

केवल उन्ही सपनो की खातिर
जिनकी ताबीर नही होते
कितन जरूरी है ये सपने
जिसके लिये भूंख मर जाती है
कपडे निशानो में तब्दील हो जाते है
मकान बंकर बन जाते है
दानिशमंद मुखबरी करने लगते हैं..
और पत्रकारिता
तवायफ के कोठे पर रक्स करती है
गौर तलब है
ये सब
उन्ही सपनो की खातिर
जिनकी ताबीर नही होते
फिर भी दिखाये जाते है सपने
लाखो की भीड में
बहलाये और
फुसलाये जाते है
बताये और समझाये जाते है सपने
क्योकि
हमारी सियासत का दारोमदार
इन्ही सपनो पर टिका है
जिन पर सपनो की ताबीर नही होते

टिप्पणियाँ

harsh ने कहा…
Shams Tanvir ki ye panktiyan Bhartiya janmanas ki sadabahar wastusthiti prakat karti hai. Sachmuch kitne bhole aur budhu hain log ki sapno ke moh me har baar chhale jaate hain fir bhi sapno ki duniya me badi jaldi bahak jaate hain. Karan hai logon ka baithe-bithaye bina mehnat ke sab kuchh mil jaaye waali mansikta. Isi theory par maukaparast siyasatbaaj tike hain, dharm ke thekedar tike hain, patrakarita ke parikaar tike hain. Patrakarita bhi sapne dikhati hai, tawayaf ke kothe par raksh karwati hai. Duniya fir bhi sapno ke mohpash me khinchi chali aati hai.

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