एक एहसास अपनी मां के नाम
मुकुंद शाही की भावनायें अपनी मां के नाम...लेकिन लगा कि हम सब इससे जुडे हैं
घुटनों से रेंगते रेंगते
कब पैरों पर खड़ा हुआ
तेरी ममता की छांव में
ना जाने कब बड़ा हुआ
काला टीका...दूध मलाई
आज भी सबकुछ वैसा है
मैं ही मैं हूं हर जगह...
प्यार ये तेरा कैसा है..
सीधा सादा...भोला भाला
मैं ही सबसे अच्छा हूं
कितना भी बड़ा हो जाउं मां
मैं आज भी तेरा बच्चा हूं....
तुमने मुझे छोड़ दिया
आंखें बंद कर मुंह मोड़ लिया
मां तुमने ऐसा क्यों किया
कभी रात के सन्नाटे में
तो कभी घर के आहाते में
तुम मुझे नजर आती हो
लेकिन फिर कहां चली जाती हो
मैं बेचैन होकर रोता हूं...
रात भर न जागता हूं...न सोता हूं
मां आठ साल से अकेला हूं
तुम कैसे भूल गई कि
मैं तुम्हारी गोद में खेला हूं...
मां एक बार तो आ जाओ
मुझे अपनी गोद में सुला जाओ
आज भी मैं
सीधा सादा...भोला भाला
एक इंसान सच्चा हूं...
चाहे कितना भी बड़ा हो जाउं मां
मैं आज भी तेरा बच्चा हूं...
कल तक तुम्हारी गोद में सोया
मैं एक छोटा बच्चा था...
आज अपनी मां की गोद में खेलता
मेरा भी एक बच्चा है...
जब मां-मां करके वो रोता है
तब ना जाने क्या होता है
दिल करता है...मैं भी तुम्हें बुलाता
तुम आती...मुझे सुलाती
प्यार से सहलाती...
बेशक...
मैं आज एक बाप सच्चा हूं...
चाहे कितना भी बड़ा हो जाउं मां
मैं आज भी तेरा बच्चा हूं...
मुझे याद है वो मनहूस पल
जैसे गुजरा हो कल
तेरे इस बच्चे ने तुझे कांधा दिया
कल मेरा बच्चा मुझे कांधा देगा
तब लोग कहेंगे
वो इंसान अच्छा था...
एक मां का बेटा सच्चा था........
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