सचिन नहीं, इसे जिंदगी की किताब कहिए

पांच फुट पांच इंच का वह शख्स हाइट बढ़ाने के कैप्सूलों का मोहताज क्यों नहीं है?
वह स्टाइलिंग जैल लगाकर जुल्फें नहीं संवारता मगर फिर भी सबका हीरो क्यों है?
वह सबसे तेज नहीं दौड़ता लेकिन फिर भी बाकियों से मीलों आगे है। आखिर क्यों?
जवाब एकदम सीधे हैं। सचिन रमेश तेंदुलकर नामक यह शख्स जानता है कि बुलंदी कद से नहीं आपके काम से होती है।
क्योंकि उसे यह भी पता है कि जुल्फों की बजाय कीर्ति पताका लहराना ज्यादा अहम है।
साथ ही उसे यह भी मालूम है कि पल में कुलांचे भरने, फिर हांफने और लड़खड़ाने की बजाय एक-एक कदम जमाकर रखते हुए लगातार दौड़ने से ही वो फर्क पैदा होता है जो आपको बाकियों से आगे रखता है।
शालीनता, संयम, विवेक.. सचिन नहीं जीवन प्रबंधन की मुकम्मल किताब है यह। रनों की तरह गुण भी बस गिनते ही जाइए।
किसी से होड़ नहीं। अपनी ताकत, अपने जुनून को एक साथ मिलाकर सफलता के नए पैमाने गढ़ते हुए जिंदगी में आगे बढ़ते जाने का हुनर उसे आता है। सचिन नामक इस किताब में जीने का सलीका पढ़िए।
खेल के मैदान में चमत्कारी चमक बिखेरने वाले इस इंसान को लोग क्रिकेट का भगवान करार देते हैं लेकिन हर कामयाबी, हर कीर्तिमान के बाद आसमान की तरफ उठे हाथ बताते हैं कि सचिन के पांव आज भी हकीकत की ठोस जमीन पर हैं। वो जानता है कि करोड़ों लोगों को चमत्कृत करने के बावजूद सर्वशक्तिमान वह नहीं कोई और है, जो कहीं ऊपर बैठा यह नजारा देख रहा है। सचिन नामक इस किताब में श्रद्धा की सूक्तियां पढ़िए।
पाकिस्तान के खिलाफ वन डे मैच में शून्य से करिअर की शुरुआत करने वाला और बाद में रनों का एवरेस्ट खड़ा कर देने वाला यह शख्स बताता है कि नाकामी से हार ना मानने वाले ही विजेता होते हैं। शून्य से शिखर तक के दुर्गम सफर की रोमांचक दास्तान। सचिन नामक इस किताब में सफलता के सूत्र पढ़िए।
एक दिवसीय मैच में 200 नाबाद रन बना इतिहास रचने वाले सचिन उस दिन साथी खिलाड़ियों के खाते के करीब 75 रनों के लिए भी दौड़े थे। साढ़े बाइस गज की पिच पर पौने तीन सौ रन की दौड़ और फिर तीस ओवर फील्डिंग.. यह विजेता जानता है कि चोटी पर बने रहने के लिए लगातार कितनी कड़ी मेहनत की दरकार होती है। सचिन नामक इस किताब में श्रम का पहाड़ा पढ़िए।
इमरान की अगुआई वाली पाकिस्तानी टीम के तूफानी गेंदबाज जब 16 साल के बच्चे सचिन को लहूलुहान कर रहे थे तब नाक से टपकते खून और विपक्षी टीम के तमाम तानों, उलाहनों के बावजूद ‘मैं खेलेगा’ की हुंकार भरता यह बच्चा क्रीज पर डटा रहा। उसे ड्रेसिंग रूम में जाकर बोतल से दूध पीने की सलाह देने वाले सूरमा तब देखते रह गए जब इस घायल बच्चे ने नामी गेंदबाजों के धुर्रे बिखेर दिए। प्रतिकूल परिस्थिति में हार ना मानना और दोगुनी ताकत से मुकाबला करना। सचिन नामक इस किताब में साहस का सैलाब पढ़िए।
मैच फिक्सिंग की कीचड़ चाहे कितनों के मुंह काले कर गई लेकिन सचिन बेदाग रहा, रेस का यह दमदार घोड़ा देश के लिए दौड़ता रहा, दांव के लिए नहीं। एक बार टीम मैनेजर अजीत वाडेकर को जब भारत की हार के लिए मैच के फिक्स हो जाने की भनक पड़ी तो चिंता में वे रात में ही सचिन के पास दौड़े और तब क्रिकेट के इस महानायक ने उन्हें आश्वस्त किया कि बाजी नहीं पलटेगी, और अगले दिन भारत की जीत पर मुहर लगने तक सचिन ने क्रीज नहीं छोड़ी। आत्मविश्वास और लाखों लोगों के भरोसे को बनाए रखने के लिए जान झोंककर लड़ने का अनूठा जज्बा। सचिन नामक इस किताब में समर्पण का सबक पढ़िए।
2004 में विश्व विजेता ऑस्ट्रेलिया से भारत का मुकाबला। ब्रेड हॉज ने सचिन का विकेट लिया और कंगारू टीम झूम उठी। मैच के अंत में हॉज ने वह गेंद महानायक के आगे ऑटोग्राफ के लिए बढ़ा दी। सचिन ने हस्ताक्षर तो किए, साथ ही एक छोटा सा वाक्य भी उस गेंद पर लिख दिया, ‘इट विल नेवर हैप्पन अगेन.’ उस बॉल को सहेजे हॉज ने तब से अब तक जाने कितनी बार मास्टर ब्लास्टर को गेंदबाजी की लेकिन फिर कभी सचिन रमेश तेंदुलकर का विकेट नहीं ले सके। सचिन नामक इस किताब में आत्मविश्वास की इबारत पढ़िए।
दर्द को सहना और बढ़ते रहना। जिंदगी का यह सबसे अहम पाठ भी इस किताब में है। 1999 के विश्वकप में केन्या के खिलाफ मैच। सचिन को पिता के देहान्त की हिला देने वाली खबर मिली। आंखों में आंसू, दिल में छटपटाहट। आंसू नहीं बहे लेकिन उस रोज तेंदुलकर के बल्ले से रनों का सैलाब बह निकला। 101 गेंदों में 140 रनों की पारी। इस पारी के बाद सचिन आकाश में दिवंगत पिता को खोजते हुए विह्वल हो उठे। सचिन नामक इस किताब में भावनाओं का समंदर पढ़िए।
इस किताब को जरूर पढ़िए, इस किताब में जिंदगी जीने का फलसफा छिपा है, इसे ध्यान से पढ़िए। इसे आपके सचिन ने बड़े जतन से लिखा है, इसे प्यार से पढ़िए।<

टिप्पणियाँ

ravi pal from kanpur. ने कहा…
Sir i am very glad to see your post and its amazing. Padh kar maza aa gaya.......

लोकप्रिय पोस्ट