किसी ख़ंज़र किसी तलवार को तक़्लीफ़ न दो,
मरने वाला तो फ़क़त बात से मर जाएगा !!!!
अजीब शख्स था खुद अलविदा कहा लेकिन
हरेक शाम मेरा इंतज़ार करता था.........!!
बोये जाते हैं बेटे
और उग आती हैं बेटियाँ
खाद पानी बेटों में
और लहलहाती हैं बेटियाँ
एवरेस्ट की ऊंचाइयों तक, ठेले जाते हैं बेटे
... और चढ जाती हैं बेटियाँ
कई तरह गिरते हैं बेटे
और संभाल लेती हैं बेटियाँ
भविष्य के स्वप्न दिखाते बेटे
जीवन का यथार्थ बेटियाँ
रुलाते हैं बेटे
और रोती हैं बेटियाँ
जीवन तो बेटों का है
और मारी जाती हैं बेटियाँ। ~ नंदकिशोर हटवाल
क्या करूँ , अगर .....
मैं वक्त - बेवक्त उसकी यादों में बसता हूँ ,
क्या करूँ , अगर .....
मैं वक्त - बेवक्त उसे तन्हाई में रुलाता हूँ,
क्या करूँ , अगर .....
... मैं वक्त - बेवक्त उसे सपनों में हँसता हूँ,
क्या करूँ , अगर .....
मुझ से ज्यादा .... गुनाह वक्त ने किया हो........
हस्ती नहीं मिटी पर इंसान मिट चुका है...
कोई महल मे सोता, कोई मरा सड़क पे...
वृद्धों का आज कल तो सम्मान मिट चुका है...
हैं संस्कार वो ही , बस धूल कुछ जमी है...
सम्हलो जरा कहीं ये भारत बदल न जाए
लोग कहते हैं कि ........
वक्त के साथ सबकुछ बदल जाता है ,
जख्म भर जाते हैं ,
यादें धुंधली हो जातीं हैं ,
जीवन तो बस .... चलने का नाम है ,
... नज़र मंजिल पर होनी चाहिए ....
लकिन कोई क्या करे......
अगर .......
मजिल ही 'वक्त' हो,
मंजिल ही 'जख्म' हो,
मंजिल ही 'यादें' हो,
मंजिल ही 'जीवन' हो,
और .....
मंजिल ही 'नज़र' हो.............
जो हमसफ़र सर-ए-मंज़िल बिछड़ रहा है "फ़राज़"
अजब नहीं कि अगर याद भी न आऊँ उसे
मंजिल तो यही थी, बस जिंदगी गुज़र गयी मेरी यहाँ आते आते...
तेज़ रफ़्तार ज़िन्दगी का ...... ये आलम है के ,
सुबह के गम ...... शाम को पुराने हो जाते हैं !!
आंखें हैं कि उन्हें घर से निकलने नहीं देती,
आंसू हैं कि ..सामान-ए-सफर बांधे हुए हैं
इंसान की ख्वाहिशों की कोई इंतहा नही.............
दो गज़ ज़मीन भी चाहिये दो गज़ कफन के बाद !!
कल मिला वक़्त, तो जुल्फें तेरी सुलझाउंगा ,
आज ज़रा उलझा हूँ, वक़्त को सुलझाने में ..!!
मुदात्तो बाद भी...............तेरा नाम, ये असर रखता है ,
तेरा जिक्र भी,...............मेरी पलखो को भींगा जाता है //
तेरा नाम कितना मुखतसर सा है....
तेरा ज़िक्र कितना तवील है....
एक कतरे मे जिन्दगी है मेरी ,पूरा समन्दर उठा के क्या होगा //
रोना तो उसकी फ़ितरत ही नही, अश्क हंसने से ही गिरा होगा //
अब तक तो दिल का दिल से तार्रुफ़ न हो सका,
माना कि उससे मिलना - मिलाना बहुत हुआ !!
लब थरथराते रहे जुबा कांपती रही
फिर भी मेरी उनसे आज बात हो गई
मरने वाला तो फ़क़त बात से मर जाएगा !!!!
अजीब शख्स था खुद अलविदा कहा लेकिन
हरेक शाम मेरा इंतज़ार करता था.........!!
बोये जाते हैं बेटे
और उग आती हैं बेटियाँ
खाद पानी बेटों में
और लहलहाती हैं बेटियाँ
एवरेस्ट की ऊंचाइयों तक, ठेले जाते हैं बेटे
... और चढ जाती हैं बेटियाँ
कई तरह गिरते हैं बेटे
और संभाल लेती हैं बेटियाँ
भविष्य के स्वप्न दिखाते बेटे
जीवन का यथार्थ बेटियाँ
रुलाते हैं बेटे
और रोती हैं बेटियाँ
जीवन तो बेटों का है
और मारी जाती हैं बेटियाँ। ~ नंदकिशोर हटवाल
क्या करूँ , अगर .....
मैं वक्त - बेवक्त उसकी यादों में बसता हूँ ,
क्या करूँ , अगर .....
मैं वक्त - बेवक्त उसे तन्हाई में रुलाता हूँ,
क्या करूँ , अगर .....
... मैं वक्त - बेवक्त उसे सपनों में हँसता हूँ,
क्या करूँ , अगर .....
मुझ से ज्यादा .... गुनाह वक्त ने किया हो........
हस्ती नहीं मिटी पर इंसान मिट चुका है...
कोई महल मे सोता, कोई मरा सड़क पे...
वृद्धों का आज कल तो सम्मान मिट चुका है...
हैं संस्कार वो ही , बस धूल कुछ जमी है...
सम्हलो जरा कहीं ये भारत बदल न जाए
लोग कहते हैं कि ........
वक्त के साथ सबकुछ बदल जाता है ,
जख्म भर जाते हैं ,
यादें धुंधली हो जातीं हैं ,
जीवन तो बस .... चलने का नाम है ,
... नज़र मंजिल पर होनी चाहिए ....
लकिन कोई क्या करे......
अगर .......
मजिल ही 'वक्त' हो,
मंजिल ही 'जख्म' हो,
मंजिल ही 'यादें' हो,
मंजिल ही 'जीवन' हो,
और .....
मंजिल ही 'नज़र' हो.............
जो हमसफ़र सर-ए-मंज़िल बिछड़ रहा है "फ़राज़"
अजब नहीं कि अगर याद भी न आऊँ उसे
मंजिल तो यही थी, बस जिंदगी गुज़र गयी मेरी यहाँ आते आते...
तेज़ रफ़्तार ज़िन्दगी का ...... ये आलम है के ,
सुबह के गम ...... शाम को पुराने हो जाते हैं !!
आंखें हैं कि उन्हें घर से निकलने नहीं देती,
आंसू हैं कि ..सामान-ए-सफर बांधे हुए हैं
इंसान की ख्वाहिशों की कोई इंतहा नही.............
दो गज़ ज़मीन भी चाहिये दो गज़ कफन के बाद !!
कल मिला वक़्त, तो जुल्फें तेरी सुलझाउंगा ,
आज ज़रा उलझा हूँ, वक़्त को सुलझाने में ..!!
मुदात्तो बाद भी...............तेरा नाम, ये असर रखता है ,
तेरा जिक्र भी,...............मेरी पलखो को भींगा जाता है //
तेरा नाम कितना मुखतसर सा है....
तेरा ज़िक्र कितना तवील है....
एक कतरे मे जिन्दगी है मेरी ,पूरा समन्दर उठा के क्या होगा //
रोना तो उसकी फ़ितरत ही नही, अश्क हंसने से ही गिरा होगा //
अब तक तो दिल का दिल से तार्रुफ़ न हो सका,
माना कि उससे मिलना - मिलाना बहुत हुआ !!
लब थरथराते रहे जुबा कांपती रही
फिर भी मेरी उनसे आज बात हो गई
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