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इंडिया बोल-__अनुराग पुनेठा का ब्लॉग__
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दिसंबर 07, 2011
ये शहर है या नुमाइश लगी हुई है कोई,
जो आदमी भी मिला, बनके इश्तेहार मिला
गर ग़लतियाँ बाबर की थीं, जुम्मन का घर फिर क्यों जले...
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