भूपेन हजारिका नहीं रहे

आशीष झा
वो आवाज जो बीते सत्तर साल से रेडियो से होकर रूह में उतर आती थी, वो संगीत जिसमें आसाम की माटी की सोंधी खुशबू बसी थी, वो अजीम फनकार यायावर जो कवि भी था और अभिनेता भी, जो लेखक भी था डायरेक्टर भी। वो भूपेन हजारिका अब हमारे बीच नहीं रहे।
बात सुर की हो या संगीत की, आवाज की हो या अंदाज की
भूपेन हजारिका दिल की बात कुछ इस तरह से करते थे कि सीधे दिल में उतर आते थे। मामूली से लगनेवाले अल्फाज उनके सुरों का साथ पाकर जैसे रुहानी ताकत से लैस हो जाते थे। गायक, संगीतकार, कवि , अभिनेता, लेखक और निर्देशक भूपेन..हजारिका के सुर और उनकी शख्सियत में हजारों रंग हैं, कुछ मटमैले, कुछ चमकीले... चटकीले। वो कभी लुभाते हैं, तो.. कभी रुलाते हैं। हसरत पत्रकार बनने की थी लेकिन बीएचयू से पॉलिटिकल साइंस में पीजी की और साथ में चार साल तक संगीत की तालीम भी ली। रेडियो उन्हें गुवाहाटी से दिल्ली ले आया तो पत्रकार बनने की हसरत उन्हें अमेरिका के कोलंबिया यूनिवर्सिटी ले गई जहां उन्होंने मास कॉम में पीएचडी की। आसाम से बनारस, बनारस से दिल्ली, दिल्ली से अमेरिका, मंजिल की तलाश ने हजारिका को यायावर बना डाला।
कोलंबिया में हजारिका की मुलाकात रॉबर्ट स्टेन्स और रॉबर्ट फेल्हरटी जैसे तब के जाने माने फिल्मकारों से हुई। लोकसंगीत में उनकी दिलचस्पी उन्हें अमेरिका के मशहूर नीग्रो गायक पॉल रॉबसन के करीब ले गई । रॉबसन का एक मशहूर गाना था .. o man river, you don’t say nothing.. you just keep rolling along। रॉबसन का यही गाना हजारिका के सुरों में ढला तो एक सवाल बनकर आया कि गंगा तुम बहती हो क्यों।
हजारिका की आवाज में एक खास तरह की मिठास है ..उन्हें सुनना एक अलग तरह का एहसास है ..जैसे तपती दोपहरी में हल्की बारिश से फिजा में हर ओर माटी की खुशबू पसर जाती है।
ये शायर जिसका नामभूपेन हजारिका है- कितनी आसानी से लोगों के दिलों में उतर जाताहै ..
हजारिका का जाना महज एक जाजाबोर का जाना नहीं, देश के लोकगीत और संगीत का खामोश होना है।

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