मेरी खताओं की फेहरिस्त ले के आया था...
अजीब शख्स था अपना हिसाब छोड़ गया....
इक उमर हुई मैं तो हँसी भूल चुका हूँ
तुम अब भी मेरे दिल को दुखाना नहीं भूले
बहुत कुरेदता है राख़ मेरे माज़ी की, मैं जरा सी चूक जाऊं तो उंगलियां जला लेगा...
अजीब शख्स था अपना हिसाब छोड़ गया....
इक उमर हुई मैं तो हँसी भूल चुका हूँ
तुम अब भी मेरे दिल को दुखाना नहीं भूले
बहुत कुरेदता है राख़ मेरे माज़ी की, मैं जरा सी चूक जाऊं तो उंगलियां जला लेगा...
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