सब कुछ अपने मन का ही हो, ऐसा कब होता है

सब कुछ अपने मन का ही हो, ऐसा कब होता है
गतिरोधों से टकरा कर, जीवन संभव होता है
एकाकी लोगों से पूछो, तो शायद यह पता चले
सूनेपन के अंदर अंदर भी कलरव होता है

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