नेट के गुंडे और इंटरनेट की गुंडा अदालतें

अनिल पाण्डेय
इंटरनेट आया तो नयी पत्रकारिता भी लाया. नयी पत्रिकारिता. नये लोग. थोड़े ज्ञानी, ढेर सारे अल्पज्ञानी. इन ज्ञानियों, अल्पज्ञानियों ने मिलकर इंटरनेट मीडिया को एक गुंडा अदालत के रूप में तब्दील कर दिया है. एक ऐसी अदालत जहां मुकदमा भी वे खुद शुरू करते हैं, जिरह भी खुद ही करते हैं और फैसला भी खुद ही सुना देते हैं. मैं नेट मीडिया के ऐसे गुंडों तथा इंटरनेट की इन सभी गुण्डा अदालतों के खिलाफ आवाज उठाने का ऐलान करता हूं.

मैं “इंटरनेट के गुंडों” के खिलाफ आवाज उठाने जा रहा हूं क्योंकि मैं यह महसूस करता हूं कि अभिव्यक्ति का यह नया और निर्वाध माध्यम अब लंपट और अल्पज्ञानी लोगों की गिरफ्त में आता जा रहा है. इनमें से ज्यादातर वे लोग हैं जिन्हें अखबार और टीवी चैनलों ने उप-संपादक लायक भी नहीं समझा, वे अब कई वेबसाइट के संपादक बनते फिर रहे हैं. मैं कई तथाकथित ब्लागरों और वेबसाइट के संपादक मालिकों को जानता हूं जो दिल्ली पत्रकार बनने आए थे, नौकरी के लिए कई अखबारों व चैनलों में टेस्ट दिए और फेल हो गए. अब वे वेबसाइट के संपादक हैं...अपने को मूर्धन्य पत्रकार मानते हैं.. जिसकी चाहे उसकी मां-बहन करते हैं... फेसबुक पर ज्ञान देने हैं... अपने कमरे में बैठ कर ब्लॉग में समाज बदलने का नुस्खा देते हैं.. विज्ञापनदाओं का महिमामंडन करते हैं. जिसने विज्ञापन नहीं दिया, उसकी बै़ड बजाते हैं...ध्यान दीजिएगा.. ये लोग सड़कों पर नहीं, कमरे में बैठ कर अपने लैपटॉप पर भाषण देते है... ऐसे, मानों अरस्तू और चाणक्य तो उनके आगे पानी भरते हैं. हाल ही में “नेट के इन गुंडों” से मेरा भी पाला पड़ा और तब मेरी समझ में आया कि कैसे यह न्यू मीडिया बहस और बौद्दिकता के नाम पर ब्लैकमेलिंग और धन कमाने का जरिया बनता जा रहा है. मैं यहां बताना चाहूंगा की नेट के इन गुंडों का अपना गिरोह है. जिनकी “लेनी है” उसके खिलाफ पहले कुछ लिखो, फिर ये गिरोह के सदस्य उसे बदनाम करने के लिए मन माफिक कमेंट लिखते हैं... अगर वह विरोध करता है तो उसे न्यू मीडिया का गलघोटू घोषित करके उसका तमाशा बनाया जाता है.

अब मैं उस घटना का जिक्र करना चाहता हूं जिसमें मुझे नेट के इन गुड़ों के खिलाफ अवाज उठाने के लिए मजबूर किया है. दिल्ली विश्वविद्यालय के एसजीटीबी खालसा कालेज में “न्यू मीडिया: यूथ मीडिया- चुनौंतियां एवं संभावनाएं” पर 4 मार्च को एक सेमिनार का आयोजन किया गया था. सेमिनार का आयोजन द संडे इंडियन और खालसा कालेज के वेब जर्नलिज्म डिपार्टमेंट ने किया था. मैं संडे इंडियन का मुलाजिम हूं और इस सेमिनार का कर्ता-धर्ता. इस सेमिनार ने इतिहास रचा. पिछले 10 सालों में मुझे याद नहीं की किसी मीडिया सेमिनार में दिल्ली-एनसीआर के 700 लोग जुटे हों. हमने इसमें 300 छात्रों के आने की उम्मीद की थी. लेकिन 650 छात्रों ने सेमिनार में अपना रजिस्ट्रेशन कराया. आ़डोटोरियम की क्षमता करीब 600 की थी. बाकी लोग सीढियों पर खड़े रहे. रवीश कुमार जी इसके गवाह हैं. कालेज के अध्यापकों का कहना था कि कभी उनके एनुअल फंक्शन में भी यह आडोटोरियम इस तरह खचाखच नहीं भरा. इस सेमिनार में खालसा कालेज के मामूली छात्र थे, बाकि बड़ी संख्या में दूसरे कालेज और संस्थानों से आए छात्र थे. दरअसल, इस सेमिनार के पीछे मेरी मंशा थी इजिप्ट की घटना के बाद छात्रों को बताया जा सके कि न्यू मीडिया की क्या ताकत है और कैसे यह सामाजिक बदलाव का हथियार बन सकता है. इस बारे में खालसा कालेज की वेब पत्रकारिता की कोआर्डिनेटर से ऐसे ही एक दिन चर्चा हो रही थी तो यह बात निकल कर आई की, क्यों न छात्रों को जागरुक करने के लिए इस पर एक सेमिनार किया जाए. इसके लिए धन की जरूरत थी. मैंने द संडे इंडियन के प्रबंधन से बात की और वे इसके लिए तैयार हो गए. द संडे इंडियन इस तरह की बौद्दिक गतिविधियों को बढ़ावा भी देता है.

मैं यहां बताना चाहूंगा कि यह सेमिनार बौद्धिक लोगों के लिए नही, स्नातक की पढ़ाई करने वाले छात्रों के लिए था और न ही इसमें न्यू मीडिया के तकनीकी पक्ष पर चर्चा होनी थी. सेमिनार में वक्ता के रूप में न्यूज-24 ग्रुप के संपादकीय निदेशक अजीत अंजुम, बीबीसी हिंदी आनलाइन की संपादक सलमा जैदी, मीडिया समीक्षक सुधीश पचौरी, एनडीटीवी के कार्यकारी संपादक रवीश कुमार, नेट एक्टिविस्ट और सिडनी से प्रकाशित अखबार द इंडियन के संपादक (भारत) आदित्य राज कौल, आज तक के डिप्टी एडीटर अभिसार शर्मा, यूपी जी न्यूज की इनपुट एडीटर शीतल राजपूत, न्यूज 24 की एंकर अंजना कश्यप, युवा मोर्चा के अध्यक्ष और सांसद अनुराग ठाकुर के अलावा कांग्रेस के प्रवक्ता व सांसद मनीष तिवारी को आंमत्रित किया गया था. इसके अलावा कालेज के प्रबंधन से जुड़े दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के पूर्व अध्यक्ष सरदार हरविंदर सिंह सरना को भी सम्मानीय अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया गया था. क्योंकि कालेज में कार्यक्रम था इसलिए उन्हें आना ही था. यह वही बात थी की घर में शादी होगी तो दादा जी रहेंगे ही. ये सभी लोग न्यू मीडिया से जुडे लोग हैं. अनुराग ठाकुर और मनीष तिवारी को बुलाने का मकसद था कि कैसे दोनों लोग न्यू मीडिया को पोलिटिकल क्यूनिकेशन के टूल के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं. अनुराग ठाकुर ने अपनी तिरंगा यात्रा से युवाओं को जोड़ने के लिए इंटरनेट का जबरदस्त इस्तेमाल किया था. मैं तो वक्ता के रूप में अमर सिंह जी को बुलाना चाह रहा था, क्योंकि वह पहले भारतीय राजनेता हैं जिन्होंने अपना पोलिटिकल कम्यूनिकेशन नेट के माध्यम से किया था. आप को याद होगा जब सपा से वे अलग हुए थे तो मुलायम सिंह को वे अपना संदेश ब्लाग के माध्यम से ही दे रहे थे. खैर, 4 मार्च को वे व्यस्त थे, इसलिए सेमिनार में आने से मना कर दिया था. जो हमने पैनल बनाया उसमें सभी क्षेत्रों से लोगों को शामिल करने की कोशिश की. अकादमिक क्षेत्र से सुधीश पचौरी को लिया तो न्यू मीडिया की विशेषज्ञ सलमा जैदी. जैदी करीब 10 सालों से बीबीसी आनलाइन से जुड़ी हैं. ब्लागर के रूप में रवीश और शीतल थे तो नेट एक्टीविस्ट के रूप में आदित्य राज कौल. अभिसार और अंजना को न्यू मिडिया के कटेंट पर बोलना था. इनमें से कुछ वक्ता अपनी व्यस्तता के चलते नहीं आ पाए. हर सेमिनार में होता है, कुछ वक्ता नहीं आ पाते. सेमिनार के आयोजन में कई बार ऐसा भी होता है कि जिसे आप विषय के अनुरूप सबसे अच्छा वक्ता मानते है, वह आप की तिथि को उपलब्ध ही नहीं है. हमने करीब तीन दर्जन लोगों से बात की तब, जाकर कुछ लोगों के नामों को अंतिम रूप दिया जा सका. जो उपलब्ध थे, अपनी समझ से उनमें से हमने बेहतर लोगों को वक्ता के रूप में चुना.


दिलचस्प है कि न्यू मीडिया का झंडा उठाने वाले लोगों को आदित्य के बारे में पता ही नहीं है. नेट के गुंडो ने अदित्य को भी न्यू मीडिया का हिस्सा होने से साफ इनकार कर दिया. 22 साल के आदित्य को इंटरनेट के जरिए सामाजिक बदलाव लाने के लिए इंडिया टूडे, टाइम्स आफ इंडिया और एनडीटीवी, अपने यंग यचीवर्स अवार्ड से सम्मानित कर चुका है वह भी तब जब वे महज 17 साल के थे. इजिप्ट में फेसबुक के जरिए जनाक्रोश के संड़कों पर आने की चर्चा आज जोरों पर है, लेकिन इंटरनेट और सोशल नेटवर्किंग साइट के जरिए लोगों को मोबलाइज कर सड़क पर उतारने वाला आदित्य दुनिया का संभवत: पहला युवक है. 2006 में आदित्य ने दिल्ली के रामजस कालेज के बीए के प्रथम वर्ष का छात्र रहते हुए इंटरनेट के जरिए प्रियदर्शनी मट्टू के न्याय के लिए “जस्टिस फार मट्टू ” नाम से अभियान चलाय था. इस नाम से एक वेबसाइट तैयार की और आर्कुट पर एक ग्रुप भी. सोशल नेटवर्किंग साइट से उन्होंने लोगों को मट्टू को इंसाफ दिलाने के लिए सड़कों पर उतरने के लिए प्रेरित किया तो वेबसाइट के जरिए लोगों से आनलाइन पीटिशन भरवाई, जिसे बाद में राष्ट्रपति को भेजा गया. इस 16 साल के नौजवान की मेहनत रंग लाई और एक दिन इंडिया गेट पर मट्टू को इंसाफ दिलाने के लिए हजारों लोग इकट्ठा हुए और कैडिल मार्च निकाला. मीडिया ने मुद्दा बनाया और फिर अदालत और पुलिस सक्रिय हुई. नतीजन, अपराधी आज तिहाड़ जेल में है. मैं यहां यह बताना चाहूंगा कि पहले नेट एक्टिविस्ट के तौर पर हम मुहल्ला लाइव के संपादक अविनाश दास को बुलाना चाह रहे थे. लेकिन आदित्य की उम्र और उनके दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र रहने की वजह से हमें लगा कि सेमिनार में आने वाले छात्रों को आदित्य से प्रेरणा मिलेगी.

इस सेमिनार की प्रशंसा की बजाए मीडियाखबर डॉटकाम के मालिक और स्वयंभू संपादक पुष्कर पुष्प और उनके बनाए गए तथाकथित मीडिया विशेषज्ञों ने सेमिनार में बुलाए गए वक्ताओं को लेकर मनगढंत कहानियां बना कर उन्हें प्रकाशित किया और यह भ्रम फैलाने की कोशिश की सेमिनार के वक्ताओं को न्यू मीडिया का ज्ञान ही नहीं है. पूरी रिपोर्ट पूर्वाग्रह से ग्रसित हो कर लिखी गई. पहले तो उन्होंने बिना मुझसे पूछे मेरे व्यक्तिगत मेल को अपनी वेबसाइट पर सार्वजनिक कर दिया और जब इस बारे में मैने फोन कर उन्हें समझाने की कोशिश की तो महाशय और गुस्से में आ गए. अगले दिन सेमिनार के बारे में जो मन में आया और लिख दिया, इसके बाद इस पर फर्जी कमेंट भी करवा दिया. एक सज्जन ने कमेंट किया की रवीश 10 मिनट में निकल गए. रवीश जी से ही पूछ लीजिए, तो आप को वे बताएंगे कि सेमिनार के लिए उन्होंने 12 से एक बजे का समय दिया था. वे समय पर आए और समय पर गए. पुष्कर को आपत्ति थी की उन्हें सेमिनार में वक्ता क्यों नहीं बनाया गया. मैने उनसे फोन पर बात की तो जरा उनका तर्क सुनिए, “हमारा हक मारा जाएगा तो हम इसके खिलाफ अभियान चलाएंगे ही.” जरा देखिए, न्यू मीडिया पर इनका हक है क्योंकि ये एक मीडिया वेबसाइड चलाते हैं. जरा इनकी वेबसाइड पर गौर करिए तो पता चलता है कि महाशय किस तरह पीआर कर रहे हैं. एक चैनल के संपादक जिन्हें मालिक का दलाल कहा जाता है और मालिक का इनकम टैक्स बचाने पर ही उन्हें संपादक बनाया गया, पुष्कर उसकी प्रशंसा में कसीदे पढ़ते रहते है.. ओजस्वी और प्रखर पत्रकार के जुमलों से नवाजते रहते हैं. इसी डॉट काम पर एक मीडिया विशेषज्ञ उभर कर आए हैं उनका नाम है विनीत कुमार.. जहां तक मैं जानता हूं ये मित्र कुछ दिनों पहले तक दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाई कर रहे थे.. पुष्कर ने उन्हें मीडिया विशेषज्ञ बना दिया है. यही न्यू मीडिया के झंडाबरदारों की खासियत है, जिसे जो चाहों वह उपाधि और विशेषण दे दो. हद तो अब हो गई है कि न्यू मीडिया का ज्ञानी कौन हो सकता है, उसका सर्टिफीकेट अब ये लोग देंगे. पुष्कर तो एक उदाहरण हैं. ऐसे लोगों की इंटरनेट पर बड़ी जमात बनती जा रही है. इनसे कोई पूछे की मीडिया संस्थानों में क्या टांग खिचाई हो रही, इसके अलावा वह कौन सी खबरें प्रकाशित कर रहे हैं जिससे समाज का भला हो रहा है. ज्यादातर ब्लागर और न्यू मीडिया विशेषज्ञ अपनी खुन्नस और फ्रस्ट्रेशन को ज्ञान और बौद्धिकता के नाम पर पाठकों के सामने पेश करते हैं. जरा मुझे बताएं कि किस न्यू मीडिया विशेषज्ञ ने सेमिनार कर 700 लोगों को इकट्ठा उन्हें न्यू मीडिया की ताकत से परिचित कराया. कायदे से तो यह सेमिनार द संडे इंडियन को नहीं, आप न्यू मीडिया के झंडाबरदारों को कराना चाहिए था. इसका मतलब यह भी नहीं कि वेबसाइट चलाने वाले सारे लोग ही ऐसे हैं. हां, कुछ लोग हैं जो सामाजिक सरोकार और हाशिए के लोगों की आवाज को बुलंद करने के लिए इस माध्यम का बखूबी इस्तेमाल कर रहे है. मैं उनको सलाम करता हूं. हमारे एक मित्र संपादक आर्थिक तंगी के बावजूद जैतापुर इसलिए गए हैं कि वहां के लोगों की आवाज को वे अपनी वेबसाइ़ड के जरिए बुलंद कर सकें. मेनस्ट्रीम मीडिया उनकी आवाज को वह स्वर नहीं दे रहा जो देना चाहिए. लेकिन सवाल है ऐसे कितने लोग हैं?

फोन पर बातचीत पर पुष्कर ने अपनी दर्ज की की उन्हें और उनके जैसे बेवसाइट चलाने वाले लोगों को क्यों नहीं मंच पर भाषण देने के लिए बुलाया गया. टीवी के लोगों को न्यू मीडिया का क्या क्या ज्ञान है. वाह पुष्कर जी... न्यू मीडिया का ठेका आप लोगों ने ले रखा है. एक पत्रकार के नाते मैं कह सकता हूं कि मीडियाकर्मी सारे दिन नेट पर ही रहता है. वह फेस बुक पर कमेंट करे न करे, (क्योंकि आप की तरह उसे फुर्सत नहीं है, वह 12 घंटे की नौकरी करता) लेकिन सारे दिन वेबसाइडों में उलझा रहता है. मैं फेसबुक पर कतई सक्रिय नहीं हूं... लेकिन दिन भर में दर्जनों वेबसाईट और ब्लाग खगालता हूं... देश दुनिया में न्यू मीडिया में क्या हो रहा है उसकी गहरी जानकारी रखता हूं और आप जैसा तथाकथित किसी वेबसाइट का संपादक न होते हुए भी न्यू मीडिया के बारे में आप से कम जानकारी नहीं रखता. चाहें तो कभी शास्त्रार्थ कर लीजिए. और आप क्या करते हैं? दिन भर में दो लेख पोस्ट कर न्यू मीडिया के विशेषज्ञ बन गए. अगर आप का न्यू मीडिया पर कोई अनुसंधान और शोध पत्र छपा हो तो दिखाइए. मीडियाखबर डाटकाम ने अभियान चलाया की यह सेमिनार सफल न हा पाए, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. सेमिनार में 700 लोग आए. दो दिन में मेरे पास सैकड़ों फोन आए और लोग आदित्य का नंबर मांग रहे हैं. वे भी नेट के जरिए आदित्य की तरह कुछ सामाजिक बदलाव लाना चाहते हैं. सेमिनार हुआ, यह महत्वपूर्ण नहीं है. महत्वपूर्ण यह है कि इस सेमिनार ने कुछ लोगों को आदित्य की तरह सामाजिक बदलाव का सूत्रधार बनने के लिए प्रेरित किया है. न्यू मीडिया के तथाकथित झंडाबरदारों, आप भी तो कुछ आदित्य पैदा करो.....

टिप्पणियाँ

बेनामी ने कहा…
बहुत बढि़या अनिल जी....आपने बहुत ही सटीक बातें लिखी हैं...सच की कसौटी पर हर किसी को कसना चाहिए

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