आ गया बाबाओं का एक नया बाप
प्रवीण कुमार
भारत एक बाबाग्रस्त देश है।यहां बाबाओं का राज है लेकिन अब इन बाबाओं का एक बाप आ गया है। ऑक्टोपस बाबा। किसी बेरोज़गार(बाबा) को जल्दी ही ऑक्टोपस का आयात का काम शुरू कर देना चाहिए.. एक ऑक्टोपस मंगाइये और अपनी दुकान खोल दीजिए। देखिये कितनी कमाई होती है। डिब्बाबांद बाबा का धंधा खुब चलेगा। ये ठीक है कि ऑक्टोपस बाबा अभी फुटबॉल की ही भविष्यवाणी कर रहा है लेकिन अगर इसे मार मार कर ट्रेनिंग दी जाए तो हर चीज़ का फोरकास्ट करेगा। शादी से लेकर गर्लफ्रैंड तक का। घर-घर में नैऋत्य कोण में एक बाबा को रख दीजिए। अपने घर में रखे अक्वेरियम को फोड़ दीजिए और फेंक डालिए। उसकी जगह पर अक्वेरियम में ऑक्टोपस बाबा लाइये। टांग तोड़िये इनकी। तभी ये जर्मनी से आगे की सोचेंगे। मुंडन से लेकर जनेऊ तक की भविष्यावाणी करनी है इनको। करनी ही पड़ेगी।
जर्मनी के प्रेमी गुस्से में है इसलिए वे इसे भून कर ऑक्टोपस बर्रा बना कर खाना चाहते हैं। मुझे लगता है कि इस बाबा का कीमा या मंचूरियन अच्छा बनेगा। बाकी जर्मनों की मर्ज़ी। स्पेन वाले इसकी हिफाज़त करना चाहते हैं। वो भी ठीक बात है। जल्दी ही चेल्सी क्लब इस बात पर विचार करेगी कि बेकहम या रोनाल्डो को लाने से पहले इस बाबा को लाओ। इसलिए ज़रूरी है कि ऑक्टोपस बाबा को ट्रेनिंग दी जाए ताकि वो क्लब लेवल की भी भविष्यवाणी करे। उसने जो काम किया है अब उस काम को आगे बढ़ाना ही होगा। वर्ना लोग ये जहां मिलते हैं वहां गोता लगाकर चले जाएंगे और उखाड़ लाएंगे। जल्दी ही ऑक्टोपस कम होने लगेंगे। फेंगशुई वाले कहेंगे कि शीशे के मर्तबान में बांसों का झुण्ड उगाने से अच्छा है कि इस बाबा को पालो। अपने घर के बूढ़े बाबाओं को भगाओ। अब यही बताएगा कि कब खाएं,कब सोएं। बताना ही पड़ेगा। फुटबॉल प्रेमी वर्ल्ड कप के बाद क्या करेंगे। उनके जीवन में और भी तो क्राइसिस हैं। उसका समाधान कौन करेगा। यही करेगा।
लेकिन रुकिये। यहीं पर बिजनेस एंगल इंटरनेशलन हो रहा है। यूरोप की पोल खुल गई है। रेशनल बनते थे भाई लोग। एक बाबा ने जब इनकी ये गत बनाई है तो हमारे देश के सारे बाबा मिलकर कितनी गत बनायेंगे। कितना लूट सकेंगे। बल्कि सोच भी रहे होंगे। बल्कि हो भी रहा है। कई बाबा क्रूज़ ट्रीप पर भक्तों के साथ प्रवचन करने जा रहे हैं। जब यूरोप के लोग फुटबॉल को लेकर अंधविश्वासी हो सकते हैं तो उन्हें जगाया जा सकता है। अपने यहां के ज्योतिषी शो को एक्सपोर्ट कर जागरूकता लाई जा सकती है। अंधविश्वास भी बिना जागरूकता के नहीं फैलती। साला इस शब्द की फिंचाई करने का जी करता है। एकदम फटीचर शब्द है। जागरूकता। इसमें अभियान लगा दे तो पूरा म्यूनिसपाल्टी लेवल का हो जाता है। ख़ैर यूरोप में भयंकर मार्केट की संभावना है। ज्योतिष ध्यान दें। उनको भी ग्रहों नक्षत्रों के खेल में फंसा कर बताये कि आज शनिवार है। काला कपड़ा पहनो। तेल दान करो। छोड़ो ये ऑक्टोपस और व्हेल का चक्कर। एक बात है कि हमारे यहां के बाबा जब फेल होते हैं तब भी कोई उनकी मरम्मत नहीं करता। हम लोगों की बात ही कुछ और है। भारत की संस्कृति में सहिष्णुता नहीं है का। है न जी।
इस पूरे प्रकरण में हमारे स्ट्रिंगर भाइयों को बधाई। अपने-अपने ज़िलों से तोता-मैना से भविष्यवाणी करवा कर रिपोर्ट भेजने के लिए। आखिर हमारे यहां के ये तोते अभी तक कर क्या रहे थे। बहुत लेट एंट्री की। कल कई टीवी पर(हमारे यहां भी) तोता मैना आ गए। कार्ड निकालने लगे। मज़ा आ गया। साला, तोता किसी ऑक्टोपस से कम है का जी। दस बीस टांग हो गए तो ऑक्टोपसवा महान हो गया का। हूं। तोता और मैना ने भी लिफाफे से स्पेन का कार्ड निकाल दिया। हमें मालूम ही नहीं था कि रोड छाप ज्योतिष इस लेवल की भी फोरकास्ट करते हैं। जल्दी ही न्यूज़ चैनल के किसी आइडिया उत्पादक(संपादक) को ज्योतिष के शो में वेरायटी लाने के लिए तोता-मैना फोरकास्ट शुरू करना चाहिए। यूनिक आइडिया। बेलमुंड ज्योतिष के बगल में बेचारी मैना। क्यूट लगेगी। कम से कम विभत्स चेहरे के बगल में प्राकृतिक सौंदर्यबोध तो बहाल होगा।
ख़ैर कैमरे के लिए कई लिफाफों में कार्ड बदल दिए गए। स्पेन और जर्मनी डाल दिये गए। इससे पता चलता है कि ऑक्टोपस एक्सक्लूसिव नहीं है। रोड छाप है। जिस तोता छाप ज्योतिष को कोई भाव नहीं दे रहा था उसने दिखा दिया न। बस वर्ल्ड कप शुरू होने के वक्त ही ये स्टोरी आती तो स्पेन के प्रधानमंत्री,जर्मनी के राष्ट्रपति इंडिया के फुटपाथों के चक्कर लगा रहे होते। सारे तोते वाले को ढूंढवा कर राष्ट्रपति भवन बुलाया जाता। उनके दांतों से कार्ड निकलवाया जाता। एक बात और समझ में नहीं आई। किसी ज्योतिषी ने स्पेन की कुंडली निकाल कर भविष्यवाणी क्यों नहीं की है। ये लोग लेट क्यों कर रहे हैं। हमारा ज्योतिष मार्केट अरबों का है,सही है लेकिन मार्केट में कंपटीटर भी तो आ गया है। देना तो रे ढाई ढाई सौ के तीन ऑक्टोपस। रे ठीक से तौल। मारेगा डंडी। आवे का। बोखारे छोड़ा देंगे तोरा हम।
भारत एक बाबाग्रस्त देश है।यहां बाबाओं का राज है लेकिन अब इन बाबाओं का एक बाप आ गया है। ऑक्टोपस बाबा। किसी बेरोज़गार(बाबा) को जल्दी ही ऑक्टोपस का आयात का काम शुरू कर देना चाहिए.. एक ऑक्टोपस मंगाइये और अपनी दुकान खोल दीजिए। देखिये कितनी कमाई होती है। डिब्बाबांद बाबा का धंधा खुब चलेगा। ये ठीक है कि ऑक्टोपस बाबा अभी फुटबॉल की ही भविष्यवाणी कर रहा है लेकिन अगर इसे मार मार कर ट्रेनिंग दी जाए तो हर चीज़ का फोरकास्ट करेगा। शादी से लेकर गर्लफ्रैंड तक का। घर-घर में नैऋत्य कोण में एक बाबा को रख दीजिए। अपने घर में रखे अक्वेरियम को फोड़ दीजिए और फेंक डालिए। उसकी जगह पर अक्वेरियम में ऑक्टोपस बाबा लाइये। टांग तोड़िये इनकी। तभी ये जर्मनी से आगे की सोचेंगे। मुंडन से लेकर जनेऊ तक की भविष्यावाणी करनी है इनको। करनी ही पड़ेगी।
जर्मनी के प्रेमी गुस्से में है इसलिए वे इसे भून कर ऑक्टोपस बर्रा बना कर खाना चाहते हैं। मुझे लगता है कि इस बाबा का कीमा या मंचूरियन अच्छा बनेगा। बाकी जर्मनों की मर्ज़ी। स्पेन वाले इसकी हिफाज़त करना चाहते हैं। वो भी ठीक बात है। जल्दी ही चेल्सी क्लब इस बात पर विचार करेगी कि बेकहम या रोनाल्डो को लाने से पहले इस बाबा को लाओ। इसलिए ज़रूरी है कि ऑक्टोपस बाबा को ट्रेनिंग दी जाए ताकि वो क्लब लेवल की भी भविष्यवाणी करे। उसने जो काम किया है अब उस काम को आगे बढ़ाना ही होगा। वर्ना लोग ये जहां मिलते हैं वहां गोता लगाकर चले जाएंगे और उखाड़ लाएंगे। जल्दी ही ऑक्टोपस कम होने लगेंगे। फेंगशुई वाले कहेंगे कि शीशे के मर्तबान में बांसों का झुण्ड उगाने से अच्छा है कि इस बाबा को पालो। अपने घर के बूढ़े बाबाओं को भगाओ। अब यही बताएगा कि कब खाएं,कब सोएं। बताना ही पड़ेगा। फुटबॉल प्रेमी वर्ल्ड कप के बाद क्या करेंगे। उनके जीवन में और भी तो क्राइसिस हैं। उसका समाधान कौन करेगा। यही करेगा।
लेकिन रुकिये। यहीं पर बिजनेस एंगल इंटरनेशलन हो रहा है। यूरोप की पोल खुल गई है। रेशनल बनते थे भाई लोग। एक बाबा ने जब इनकी ये गत बनाई है तो हमारे देश के सारे बाबा मिलकर कितनी गत बनायेंगे। कितना लूट सकेंगे। बल्कि सोच भी रहे होंगे। बल्कि हो भी रहा है। कई बाबा क्रूज़ ट्रीप पर भक्तों के साथ प्रवचन करने जा रहे हैं। जब यूरोप के लोग फुटबॉल को लेकर अंधविश्वासी हो सकते हैं तो उन्हें जगाया जा सकता है। अपने यहां के ज्योतिषी शो को एक्सपोर्ट कर जागरूकता लाई जा सकती है। अंधविश्वास भी बिना जागरूकता के नहीं फैलती। साला इस शब्द की फिंचाई करने का जी करता है। एकदम फटीचर शब्द है। जागरूकता। इसमें अभियान लगा दे तो पूरा म्यूनिसपाल्टी लेवल का हो जाता है। ख़ैर यूरोप में भयंकर मार्केट की संभावना है। ज्योतिष ध्यान दें। उनको भी ग्रहों नक्षत्रों के खेल में फंसा कर बताये कि आज शनिवार है। काला कपड़ा पहनो। तेल दान करो। छोड़ो ये ऑक्टोपस और व्हेल का चक्कर। एक बात है कि हमारे यहां के बाबा जब फेल होते हैं तब भी कोई उनकी मरम्मत नहीं करता। हम लोगों की बात ही कुछ और है। भारत की संस्कृति में सहिष्णुता नहीं है का। है न जी।
इस पूरे प्रकरण में हमारे स्ट्रिंगर भाइयों को बधाई। अपने-अपने ज़िलों से तोता-मैना से भविष्यवाणी करवा कर रिपोर्ट भेजने के लिए। आखिर हमारे यहां के ये तोते अभी तक कर क्या रहे थे। बहुत लेट एंट्री की। कल कई टीवी पर(हमारे यहां भी) तोता मैना आ गए। कार्ड निकालने लगे। मज़ा आ गया। साला, तोता किसी ऑक्टोपस से कम है का जी। दस बीस टांग हो गए तो ऑक्टोपसवा महान हो गया का। हूं। तोता और मैना ने भी लिफाफे से स्पेन का कार्ड निकाल दिया। हमें मालूम ही नहीं था कि रोड छाप ज्योतिष इस लेवल की भी फोरकास्ट करते हैं। जल्दी ही न्यूज़ चैनल के किसी आइडिया उत्पादक(संपादक) को ज्योतिष के शो में वेरायटी लाने के लिए तोता-मैना फोरकास्ट शुरू करना चाहिए। यूनिक आइडिया। बेलमुंड ज्योतिष के बगल में बेचारी मैना। क्यूट लगेगी। कम से कम विभत्स चेहरे के बगल में प्राकृतिक सौंदर्यबोध तो बहाल होगा।
ख़ैर कैमरे के लिए कई लिफाफों में कार्ड बदल दिए गए। स्पेन और जर्मनी डाल दिये गए। इससे पता चलता है कि ऑक्टोपस एक्सक्लूसिव नहीं है। रोड छाप है। जिस तोता छाप ज्योतिष को कोई भाव नहीं दे रहा था उसने दिखा दिया न। बस वर्ल्ड कप शुरू होने के वक्त ही ये स्टोरी आती तो स्पेन के प्रधानमंत्री,जर्मनी के राष्ट्रपति इंडिया के फुटपाथों के चक्कर लगा रहे होते। सारे तोते वाले को ढूंढवा कर राष्ट्रपति भवन बुलाया जाता। उनके दांतों से कार्ड निकलवाया जाता। एक बात और समझ में नहीं आई। किसी ज्योतिषी ने स्पेन की कुंडली निकाल कर भविष्यवाणी क्यों नहीं की है। ये लोग लेट क्यों कर रहे हैं। हमारा ज्योतिष मार्केट अरबों का है,सही है लेकिन मार्केट में कंपटीटर भी तो आ गया है। देना तो रे ढाई ढाई सौ के तीन ऑक्टोपस। रे ठीक से तौल। मारेगा डंडी। आवे का। बोखारे छोड़ा देंगे तोरा हम।
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