बूझो तो जानें

इब्नबतूता पहन के जूतानिकल पड़े तूफान में
थोड़ी हवा नाक में घुस गई घुस गई थोड़ी कान में
कभी नाक को, कभी कान कोमलते इब्नबतूता
इसी बीच में निकल पड़ा उनके पैरों का जूता
उड़ते उड़ते जूता उनकाजा पहुँचा जापान में
इब्नबतूता खड़े रह गये मोची की दुकान में। ..


सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की कविता आजकल काफी चर्चा में है...बतांये क्यों...मित्र ने बताया ,सोचा साथियों से वांटा जाये

टिप्पणियाँ

Udan Tashtari ने कहा…
इब्नेबतूता ही जाने उनका किस्सा!! :)
सब गुलज़ार जी की कृपा है....:)

आपको आज ही ब्लॉग स्पॉट पर ढूँढा है...अब निरंतर आऊंगा....

कुलदीप मिश्र
सर प्रणाम! अहसासों का जितना बड़ा खजाना गुलज़ार साहब के पास है शायद ही किसी के पास हो...पता नहीं क्यूँ उन्हें सर्वेश्वर जी से २ शब्द उधार लेने पड़े...खैर आपका ब्लॉग पेज आज ही ढूंढा है...अब निरंतर आया करूँगा...

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