दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

हो जाय न पथ में रात कहीं,मंज़िल भी तो है दूर नहीं -यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है!दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
बच्चे प्रत्याशा में होंगे,नीड़ों से झाँक रहे होंगे -यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है!दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
मुझसे मिलने को कौन विकल?मैं होऊँ किसके हित चंचल? -यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता है!दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

आज हरवमश राय बच्चन की पुण्यतिथी है...उनकी कविता याद आयी

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