क्या पाकिस्तान भी अफगानिस्तान की राह पर है


कहते है कि इतिहास अपने आप को दोहराता है...अफगानिस्तान में जो कुछ पिछले ३० सालो में हुआ...वो पाकिस्तान का किया कराया ही रहा...इसमें किसी शक की गुंजाइश नही रही॥लेकिन जो पाकिस्तान ने बोया...वो अब काट रहा है...दरअ जो एके -४७ , राकेट लांचरं, मशीन गन पाकिस्तान ने कबाइलियो, पठानो,मुजाहिदीनो, तालिबानियो को दिये थे, वो उन्होने अब अपने आकाओं की तरफ ही मोड दी है...तो क्या पाकिस्तान भी अफगानिस्तान की राह पर है॥ जो मुजाहिदीन रूसियो के खिलाफ साथ थे...वो सत्ता मिलते ही एक दूसरे के खून के प्यासे हो गये थे...लोगो को याद होगा कि अहमद शाह मसूद, अब्दुल रशीद दोस्तम, गुलबुद्दीन हिकमतयार, फहीम जैसे कमांडर एक दूसरे के खिलाफ लड रहे थे...खासकर १९९२ से लेकर १९९६ तक का समय अफगानिस्तान में सिविल वार का था, सभी गुट लड रहे थे,,,साथ ही पाकिस्ताम ने हाथ खीचं कर तालिबानियों को सपोर्ट करना शुरू कर दिया था...ये वो लोग थे, जो सोवियत संध के खिलाफ लडाई में साथ साथ लड रहे थे...फिर रुसियो के जाने के बाद खुद लडने लगे...फिर देखिये कि अब्दुल रशीद शयाफ ने अल कायदा के साथ मिलकर मसूद का सफाया कर दिया॥दोस्तम और हिकमतयार एक दूसरे की जान के दुश्मन हो गये॥ जब तालिबानी काबुल तक पहुच गये , तो मसूद और दोस्तम तो भाग गये, लेकिन राष्टपति डां नजीबुल्ला को छोडकर भाग गये। साथ ही एसा कर गये कि नजीबुल्ला भाग भी ना पाये,,,नजीबुल्ला को यूएन बिल्डिंग में शरण लेनी पडी थी...मदद के लिये उनकी अपील किसी ने नही सुनी॥और जब तालिबानी आये तो नजीबुल्ला और उनके भा्ई अहमदजई को सरेआम लटका दिया...दोस्तम आज तक किसी का दोस्त नही हुआ...वो फिलहाल भागा हुआ है...हिकमतयार पाकिस्तान में कही छुपा है...रब्बानी अब अमेरिका के साथ है...और नेतागिरी कर रहे है....लेकिन अब सीन काबुल से हट कर कंधार, अफगानिस्तान-पाकिस्तान की सीमा से सटा इलाका हो गया है...अब ओसामा बिन लादेन, मुल्ला उमर, फजिलुल्लाह, मुह्म्मद हाफिज सईद, जैसे लोगो तक मामला सिमट गया है,,,तालिबानियो और अलकायदा ने पाकिस्तान के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है...स्वात घाटी मे जो हो रहा है...वो पाकिस्तानी फौज के पसीने छुडा रहा है...पाकिस्तान ने तालिबान को पाला पोसा, लेकिन वही तालिबान अब पाकिस्तान का तालिबानीकरण करने पर तुला है...वजीरिस्तान, स्वात घाटी, फाटा, वो इलाके है...जंहा पाकिस्तानी फौज की भी नही चलती है...पुलिस की तो छोडिये...तालिबान ने अब पाकिस्तानी सरकार के साथ काम कर रहे तमाम तजीमों के खिलाफ फतवा जारी कर दिया है...मसलन लश्करे तयबा, हिजबुल मुजाहिदीन , हरकत उल अंसार जैसे संगठनो के खिलाफ यदि तालिबानी हथियार उठाते है...तो ये बाकि दुनिया के लिये अच्छी खबर हो सकती है...लेकिन पाकिस्तानी सरकार के लिये नही...क्योकि वो तमाम संगठन जो पीओके में कश्मीर की आजादी के नाम पर लड रहे है...वो तुरंत पाला बदल लेगें...उनकी विचारघारा एक है...इस्लामी कानून लागू कराना...समस्या पाकिस्तान के लिये है...वो क्या करेगी...सम 2006 में पाकिस्तान के लेखक सैयद जमालुद्दीन की किताब आयी थी, Divide Pakistan to eleminate Terrorism...जमालुद्दीन के मुताबिक देश में हालात 1971 जैसे बने हुये है...और दुनिया से यदि आतंकवाद को खत्म करना है तो मुल्क के कम से कम 4 टुकडे और करदेने चाहिये....अभी तक तालिबान और अलकायदा ने जीना मुहाल किया था...अब अगर हिजबुल मुजाहिदीन, लश्रकरे तायबा जैसी तंजीमों ने मोर्चा खोल दिया तो क्या होगा॥वैसे भी लाल मस्जिद कांड के बाद फौज की साख भी गिरी है...उपर से अमेरिका डंडा किये है...यानि पाकिस्तान को अब खुद के बोये काटों से जूझना होगा....

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