रफ्तार @ १०० किमी

राजिंदर शर्मा
तेज रफ्तार का सपना दिखाता ग्रेटर नोएडा का एक्सप्रेस वे... जिसपर बेकाबू होती रफ्तार सपनों पर ब्रेक लगा जाती है... ऐसा ही एक सपना थी दिल्ली के एक एथलीट.... जिसकी काबिलियत पूरे देश का सपना बनने लगी थी... वो जब दौड़ती, तालियां गूंज उठती... उम्मीदें पंख लगाकर आसमान छूने लगतीं... कदम दर कमद वो सबसे आगे निकल जाने को बेताब रहती... आगे सबसे आगे... इतना आगे कि देश की पहचान बन जाए, देश की शान बन जाए... रोज ट्रैक पर उतरती... रफ्तार बढ़ाने का सपना लिए... महीनों तक घंटों की मेहनत के बाद चार सौ मीटर नापते कदमों की रफ्तार इस दूरी को सेकन्डों में नहीं - सेकंड के कुछ हिस्सों भर में कम कर पाती... फिर भी, भरोसा बढ़ता कि कदम सही दिशा में मनचाही रफ्तार हासिल करने की तरफ बढ़ रहे हैं... खुद पर भरोसा हमेशा कायम रहा, इसलिए मेहनत से परहेज भी नहीं हुआ... कदम रफ्ता रफ्ता साथ दौड़ते दूसरे कदमों से फासले बढ़ाने लगे थे... ट्रैक से मैड्ल्स और पोडियम तक पहुंचने लगे थे.. अपने साथियों में उसकी पहचान सबसे तेज की बनने लगी थी... लेकिन उसे तो होना था तेज और तेज... वो स्कूल में हजारों साथियों की भीड़ में अलग दिखने लगी... वो ट्रैक पर पीछा करते एथलीट्स से आगे दिखने लगी... उसे होना था आने वाले कल की पीटी उषा... उसे होना था एक साइनी अब्राहम... लेकिन रफ्तार ट्रैक से निकल कर गाड़ी में बेलगाम हुई और हमेशा हमेशा के लिए थम गई... टूट गया परिवार, दोस्तों और देश का एक और उड़नपरी देखने का खवाब... जिसे ट्रैक पर रफ्तार ने पहचान दी... उसे सड़क की रफ्तार लील गई... काश, वक्त पर ब्रेक लगी होती - सपनों को ब्रेक न लगती।

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