डूब गयी "वो कागज़ की कश्ती"
लोगो को बचपन की याद ताजा कराने वाली वो कागज़ की कश्ती डूब गयी है...उसे बारिश का पानी बहा कर ले गया है। जिंदगी ने ना सिर्फ उससे जवानी छीन ली बल्कि इन अल्फाजो के लाखो चाहने वालो को चौका भी गया...जी हां ये खूबसूरत नज्म को साकार करने वाले शायर सुर्दशन अब इस दुनियां से कूच कर गये...ये विडंबना ही है कि इसे लिखने वाले सुदर्शन को बहुत कम लोग जानते थे। निसंदेह गायक जगजीत सिंह ने अपनी गायकी से जग को जीता है। लेकिन इससे शायद ही कोई इंकार करे कि उनकी सफलता में इस नज्म का बहुत बडा हाथ था... जालंधर की एक सड़क...चुपचाप चलती एक गाड़ी....और इस गाड़ी के पीछे एक कारवां...एक शायर अपने लफ्जों में जिन्दगी के जज्बातों की तर्जुमानी करके इस फानी दुनिया से कूच कर गया..अब बची है उसकी याद...जालंधर के माडल टाउन में इस शायर सुदर्शन फाकिर की देह पंचतत्व में विलीन हो रही है....आग की लपटों को बीच लोगों को याद आ रहा है...इस शायर का फलसफा---जिन्दगी क्या बताउं तुझे किस तरह जिया है मैंने...
आज से 73 साल पहले जालंधर में ही शुरु हुई थी सुदर्शन फाकिर की जिन्दगी...इस शहर के डीएवी कालेज से एम ए की डिग्री हासिल रने वाले फाकिर ने अपनी जवानी में मोहन राकेश के नायक आषाढ़ का एक दिन का निर्देशन किया..जालंधर में वे इस नाटक से रातों रात मशहूर हुए....जालंधर के आकाशवाणी केंद्र में काम करने के चंद दिनों बाद इस शायर ने मुंबई का रुख किया.....कई मशहूर संगीत निर्देशकों के लिए गीत लिखने वाले इस शायर ने उसी दौर में लिखा जगजीत सिंह के लिए..---ये कागज की कश्ती ये बारिश का पानी...और बेगम अख्तर के लिए..आई बरसात तो बरसात ने दिल तोड़ दिया....
बेटा..बहू..पोता..और बीवी...एक भरा पूरा परिवार...सुदर्शन फाकिर ने मुहब्बत को लफ्जों में बयान किया तो उसे जिन्दगी में भी भरपूर जीया... इस परिवार की बुनियाद पड़ी एक मुहब्बत से...लोग उनकी शायरी के दीवाने थे और वो उनकी शायरी चुपके से एक चाहनेवाले के दिल में उतर गई....सुदेश फाकिर ने इस शायर को इस तरह प्यार किया कि अपनी पूरी जिन्दगी उनकी शायरी को दे दी...
एक चश्मा....कुछ किताबें...चंद तस्वीरें...फाकिर साहब नहीं हैं...चंद निशानियां रह गई हैं...लेकिन फाकिर को चाहने वाले जानते हैं कि शायर मौत को जीत लेता है...वह अपने कलाम में जिन्दा रहता है...
सुदर्शन फाकिर...कागज की कश्ती....बारिश का पानी....इस शायर को हिन्दुस्तान याद रखेगा...
टिप्पणियाँ
फाकिर साहब महान शाइर थे....उन्हें नमन्..
mahesh from bag films
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mahesh kumar