एक सचिन कई चेहरे
Rajendra Sharma
कई बार समझ में नहीं आता कि सचिन सिर्फ क्रिकेटर हैं या कि इससे कहीं एकदम अलग शख्सियत...। ऐसा शायद इसलिए भी लगता है कि सचिन कहीं-न-कहीं बड़े हो गए हैं और क्रिकेट छोटा...। इसीलिए हम सब अब सचिन के दूसरे पहलुओं को खोजते हैं....हालांकि वो खुद आज भी मैदान पर उसी तरह एक-एक रन के लिए लड़ते हैं....जैसा अट्ठारह साल पहले था...।
क सचिन हजार चेहरा...। जीते-जी किस्से-कहानियों का हिस्सा बन चुका ये शख्स अब रिकॉर्ड तोड़ता है....तो उस तरह रोमांच पैदा नहीं करता...।
ऐसा इसलिए कि सचिन अब अकसर सचिन के ही रिकॉर्ड को तोड़ता है....
लेकिन सचिन का बाजार है और इसीलिए उसमें दिलचस्पी कम नहीं होने पाती...।
आज भी लाखों हैं... जिनकी सोच "सचिन नहीं....तो क्रिकेट नहीं" वाली है....।
वैसे कई बार समझना मुश्किल हो जाता है कि सचिन का बाजार है.....बाजार का सचिन है....या कि बाजार में खड़ा सचिन है...।
सचिन के पीछे कारोबारी भागते हैं....उनके चंद सेकेंड की बोली करोड़ों में लगाते हैं....तो दूसरी तरफ ऐसा करते हुए सचिन खुद भी कई बार एक कारोबारी नजर आते हैं....।
जहां सचिन के बाद मैदान पर उतरे खिलाड़ी उम्रदराज कहलाते हैं... वहां उम्र सचिन के लिए अनुभव होती है... क्योंकि सचिन है तो कुछ अलग है...
तकरीबन दो दशक पहले मैदान पर उनके खेल की सहजता पर लंबी चर्चा होती थी....तो आज वही सहजता कई बार करियर के आखिरी पड़ाव पर खड़े एक खिलाड़ी की अपने लिए कुछ और साल खींच लाने की सफल जद्दोजेहद दिखती है....। और यहीं पर सचिन क्रिकेटर से हटकर क्रिकेट के कामयाब कारोबारी नजर आते हैं...
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