गंगोत्री में डुबकी और कल्याण का तर्कशास्त्र
मुरली मनोहर श्रीवास्तव
आला अधिकारी के चपरासी जी को मैंने मलाई वाली चाय ऑफर की, पर वह मेरे और अपने प्रगाढ़ संबंध को खतरे के निशान से ऊपर ले जाने पर उतारू था। मैं उसे मस्का लगा रहा था और वह पिंड छुड़ा रहा था। मैं कह रहा था- अरे मित्र, तुम तो मेरी सूचना के आधार हो, मेरी लेखनी की धार हो ,सनसनी के सूत्रधार हो, विज्ञापन फिल्मों के राजपाल हो और तो और, इस व्यंग्य की पतवार हो,आम जनता के खेवनहार हो। अगर तुम मुझसे से रूठ गये, तो समझो, सरस्वती मुझसे रूठ गयी। सोचो, तुम्हारे बाद मैं मसाला कहां से लाउंगा, कैसे मिलेगा! मुझे मौका भ्रष्टाचार पर रिसर्च का रास्ता बताएगा, मुझ नये नये अपनाये जाने वाले गुर काली कमाई को ठिकाने लगाने के, कैसे पता लगेगा कि कौन-सा आला अफसर किस नेता का खास है, किसने किसको चढ़ाया और किसने किसको गिराया, विकास की गंगोत्री में कौन नहा रहा है और कौन प्यास से मरा जा रहा है! भला बताआ॓। तुम्हारे सिवाय कौन दे सकता है इतनी सटीक सूचना !वह मुझे देख बिदक रहा है और कह रहा है- मैं तुम्हारी चाय नहीं पीऊंगा, तुम लोग बहुत नकारात्मक आदमी हो, तुम लोगों के मारे ग्राहक से बीड़ी-सिगरेट लेकर पीना और खैनी खाना तक हराम हो गया है। कभी पेन में कैमरा छुपा लेते हो, कभी उंगली में दबा लेते हो, कभी कॉलर सिलवा लेते हो तो कभी बटन में फिट करा लेते हो, तुम लोगों की इन हरकतों के कारण जल प्रवाह रूका है और सतयुग आ गया है। मैं समझा गया, यह बंदा कंफ्यूज है, इसका मॉरल बूस्ट करना पडे़गा। मैं बोला- देखो पिछले पंद्रह बरसों में मैंने क्या कभी तुम्हारा विश्वास तोड़ा? क्या आज तक किसी को पता चला कि आला अफसरों की इतनी सटीक खबर मुझ तक कहां से आयीं? क्या कोई देख पाया कि कैसे इनकम टैक्स ऑफिस के सामने बैठा मन्नू पनवाड़ी भी चार फ्लैट बना गया? यह राज अगर आज तक राज है तो हमारे और तुम्हारे प्रगाढ़ रिश्ते के चलते। बस, मैं तो तुमसे आइडिया लेकर उसे कागज पर उतार देता हूं, असली राइटर तो तुम हो। रही फोटो खींचने की बात तो वह मीडिया वाले करते हैं। सभी ले-दे के अपना गुजारा करते हैं। वह बोला- क्या पता, कल को तुम बदल जाआ॓। तर्क से उसे समझाने में विफल रहने पर मैं भावनात्मक स्तर पर उतर आया। कहा, अच्छा चलो मैं गंगाजल उठाकर सौगंध खाता हूं, कभी तुम्हारे साथ विश्वासघात नहीं करूंगा। तुम इस महान सामाजिक साहित्य लेखन में मेरा सहयोग बनाये रखो। अरे, तुम तो देश के वह महान इतिहासकार हो, जो आने वाले समय में श्रद्धा का पात्र होगा। कल की पीढ़ी को वर्तमान युग के भ्रष्टाचार की वैतरिणी का समग्र आलेख तुम्हारे सहयोग से ही तो प्राप्त होगा। राष्ट्र तुम्हारा कृतज्ञ रहेगा। यदि लोग जान पाएंगे कि देश की बुलंदी की दीवारों को किन-किन आला अफसरों ने खोखला किया है, तो वह तुम्हारे बलिदान के कारण। तुम सहयोग देकर राष्ट्र के महान इतिहास में अमर हो जाआ॓गे। तुम्हारा नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। मेरे कसम खाने के भाव से वह द्रवित हो उठा। ठीक है गंगाजल तो नहीं, यह भ्रष्टाचार की वैतरिणी सौ-सौ की गड्डी है। इस पर हाथ रखकर कसम खा लो, भरोसा हो जाएगा। मुझे पता है, एक बार इस पर हाथ रख कर कसम खाने पर आदमी का दीन-ईमान जीवित नहीं बचता। वाकई, उस गड्डी को छूते ही मेरे भीतर चार सौ चालीस वोल्ट का करेंट दौड़ गया। मैंने सोचा, जब इसके स्पर्श मात्र से ही इतना रोमांच हो रहा है, तो जब यह गड्डी लॉकर में पहुंचती होगी, तब आदमी का क्या हाल होता होगा! मुझे बेहोशी में जाते देख उसने रूमाल से मुझ पर हवा फेंकने लगा। और बोला कहां खो गये और किन सपनों में खो गये, बर्दाश्त नहीं कर पाये खुशबू!मैं झेंप गया, बोला-कुछ नहीं, बस सौगंध का असर था।
आला अधिकारी के चपरासी जी को मैंने मलाई वाली चाय ऑफर की, पर वह मेरे और अपने प्रगाढ़ संबंध को खतरे के निशान से ऊपर ले जाने पर उतारू था। मैं उसे मस्का लगा रहा था और वह पिंड छुड़ा रहा था। मैं कह रहा था- अरे मित्र, तुम तो मेरी सूचना के आधार हो, मेरी लेखनी की धार हो ,सनसनी के सूत्रधार हो, विज्ञापन फिल्मों के राजपाल हो और तो और, इस व्यंग्य की पतवार हो,आम जनता के खेवनहार हो। अगर तुम मुझसे से रूठ गये, तो समझो, सरस्वती मुझसे रूठ गयी। सोचो, तुम्हारे बाद मैं मसाला कहां से लाउंगा, कैसे मिलेगा! मुझे मौका भ्रष्टाचार पर रिसर्च का रास्ता बताएगा, मुझ नये नये अपनाये जाने वाले गुर काली कमाई को ठिकाने लगाने के, कैसे पता लगेगा कि कौन-सा आला अफसर किस नेता का खास है, किसने किसको चढ़ाया और किसने किसको गिराया, विकास की गंगोत्री में कौन नहा रहा है और कौन प्यास से मरा जा रहा है! भला बताआ॓। तुम्हारे सिवाय कौन दे सकता है इतनी सटीक सूचना !वह मुझे देख बिदक रहा है और कह रहा है- मैं तुम्हारी चाय नहीं पीऊंगा, तुम लोग बहुत नकारात्मक आदमी हो, तुम लोगों के मारे ग्राहक से बीड़ी-सिगरेट लेकर पीना और खैनी खाना तक हराम हो गया है। कभी पेन में कैमरा छुपा लेते हो, कभी उंगली में दबा लेते हो, कभी कॉलर सिलवा लेते हो तो कभी बटन में फिट करा लेते हो, तुम लोगों की इन हरकतों के कारण जल प्रवाह रूका है और सतयुग आ गया है। मैं समझा गया, यह बंदा कंफ्यूज है, इसका मॉरल बूस्ट करना पडे़गा। मैं बोला- देखो पिछले पंद्रह बरसों में मैंने क्या कभी तुम्हारा विश्वास तोड़ा? क्या आज तक किसी को पता चला कि आला अफसरों की इतनी सटीक खबर मुझ तक कहां से आयीं? क्या कोई देख पाया कि कैसे इनकम टैक्स ऑफिस के सामने बैठा मन्नू पनवाड़ी भी चार फ्लैट बना गया? यह राज अगर आज तक राज है तो हमारे और तुम्हारे प्रगाढ़ रिश्ते के चलते। बस, मैं तो तुमसे आइडिया लेकर उसे कागज पर उतार देता हूं, असली राइटर तो तुम हो। रही फोटो खींचने की बात तो वह मीडिया वाले करते हैं। सभी ले-दे के अपना गुजारा करते हैं। वह बोला- क्या पता, कल को तुम बदल जाआ॓। तर्क से उसे समझाने में विफल रहने पर मैं भावनात्मक स्तर पर उतर आया। कहा, अच्छा चलो मैं गंगाजल उठाकर सौगंध खाता हूं, कभी तुम्हारे साथ विश्वासघात नहीं करूंगा। तुम इस महान सामाजिक साहित्य लेखन में मेरा सहयोग बनाये रखो। अरे, तुम तो देश के वह महान इतिहासकार हो, जो आने वाले समय में श्रद्धा का पात्र होगा। कल की पीढ़ी को वर्तमान युग के भ्रष्टाचार की वैतरिणी का समग्र आलेख तुम्हारे सहयोग से ही तो प्राप्त होगा। राष्ट्र तुम्हारा कृतज्ञ रहेगा। यदि लोग जान पाएंगे कि देश की बुलंदी की दीवारों को किन-किन आला अफसरों ने खोखला किया है, तो वह तुम्हारे बलिदान के कारण। तुम सहयोग देकर राष्ट्र के महान इतिहास में अमर हो जाआ॓गे। तुम्हारा नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। मेरे कसम खाने के भाव से वह द्रवित हो उठा। ठीक है गंगाजल तो नहीं, यह भ्रष्टाचार की वैतरिणी सौ-सौ की गड्डी है। इस पर हाथ रखकर कसम खा लो, भरोसा हो जाएगा। मुझे पता है, एक बार इस पर हाथ रख कर कसम खाने पर आदमी का दीन-ईमान जीवित नहीं बचता। वाकई, उस गड्डी को छूते ही मेरे भीतर चार सौ चालीस वोल्ट का करेंट दौड़ गया। मैंने सोचा, जब इसके स्पर्श मात्र से ही इतना रोमांच हो रहा है, तो जब यह गड्डी लॉकर में पहुंचती होगी, तब आदमी का क्या हाल होता होगा! मुझे बेहोशी में जाते देख उसने रूमाल से मुझ पर हवा फेंकने लगा। और बोला कहां खो गये और किन सपनों में खो गये, बर्दाश्त नहीं कर पाये खुशबू!मैं झेंप गया, बोला-कुछ नहीं, बस सौगंध का असर था।
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