याद आये कवि प्रदीप


अनुराग पुनेठा
कवि प्रदीप मेरे जमाने के कवि नही थे। ना ही आर डी बर्मन के संगीत में उनका नाम आता है। लेकिन ये कवि या गीतकार तब दिल में धर कर गया था जब बचपन में ऐ मेरे वतन के लोगो सुना था...फिर बडे हुये तो पढा, जाना, संमझा...और इस महान गीतकार को एक छोटी सी श्रदाजली


देश नक्शे में नहीं होता...देश नक्शे में उतरने से पहले दिल में बनता है...दिल आजाद होता है...... यह दिल अक्सर किसी कवि का होता है....देश पहले कविता बनता है फिर लोगों के दिल में उतर जाता है...

देश अमर...देश का गीत अमर...और अमर....इस गीत को गढने वाला........कवि प्रदीप.....


.गुलाम हिंदुस्तान में आखें खोलीं...लेकिन मध्यदेश के वडनगर के इस कवि ने जब आंखे बंद की तो उसके सिर पर आजाद भारत के राष्ट्कवि का ताज था...एक गीत...हां,बस एक गीत..कवि जब इस गीत में रोया तो देश रो पड़ा...(ऐ मेरे वतन के लोगों..)...इस गीत के अंतरे देश की आंखों में आंसू बन गए....नेहरु भी रोये....और कवि प्रदीप रोये थे परमवीर मेजर शैतान सिंह भठ्ठी की शहादत पर....1962 की लड़ाई...इस लड़ाई के शहीद...और इस शहादत को आवाज देता यह गीत...यह गीत वडनगर के कवि प्रदीप को राष्ट्रकवि बना गया...

सिपाही सीमा पर लड़ते है...कवि गीतों से लड़ता है...हां..लड़ाई का भी एक गीत होता है...(दूर हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है..)..करो या मरो--अंग्रेजों भारत छोड़ो...1942 का आजादी का महासंग्राम...इस संग्राम ने अंग्रेजी हुकूमत की ताबूत में कील ठोकी तो यह गीत ब्रतानी ताकत पर हथौड़े की चोट कर रहा है....उधर एक नंगे फकीर से एक साम्राज्य डरा....इधर इस कवि के गीत से बर्तानी ताज हिला...किस्मत फिल्म के इस गीत के लिए कवि प्रदीप को अंग्रेजी सरकार ने वारंट जारी किए....देश की आजादी का इतिहास इस गीत के बिना अधूरा है...

(हम लाए हैं कश्ती निकाल के..)..देश बंटा..देश का गीत नहीं बंटा...नेता बंटे..कवि की कविता नहीं बंटी....पाकिस्तान में यह गीत चंद लफ्जों के हेरफेर के बाद लगभग कौमा तराना बना रहा...इस गीत के आगे बंटवारे की सियासत हार गई....

कवि प्रदीप...मध्यदेश का कवि...यह कवि आगे के लिए देश को यह गीत दे गया....(इंसान का इंसान से हो भाईचारा..) यानि राजा मरते हैं सिर्फ कवि जीता है...और जीता है उसकी कविता में देश...
इस कवि का सवाल...(आज तेरे संसार की हालत...)...इस कवि का दर्द..(पिंजरे के पंछी रे तेरा दर्द ना जाने कोय..)
यह कविता बनते देश का दर्द है...इसकी थाह कौन पाएगा...

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